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________________ 'यह किसकी पत्नी को ले कर जा रहे हो?' झगड़ा-झांसा खड़ा करते हैं। इसको भी आप संन्यास दे दें। मैंने उसको संन्यास दे दिया। वह आठ दिन बाद फिर आया कि मेरे बेटे को । क्योंकि लोग कहते हैं कि बाबा जी, किसका बच्चा भगाए ले जा रहे हो? यह गेरुआ तो खतरनाक है! क्योंकि लोगों की अपेक्षाएं हैं। लोग ताली बजा देंगे, फूल-माला पहना देंगे - उनकी फूल-माला में छिपी फांसी को मत भूल जाना। उन्होंने गर्दन पर हाथ रख लिया, अब वे कहेंगे. कहां जा रहे हो? क्या कर रहे हो? कैसे उठते? कैसे बैठते? किससे बात करते? कितनी देर सोते ? ब्रह्ममुहूर्त में उठते कि नहीं? अब वे सब तरफ तुम्हारी जांच रखेंगे। उन्होंने जो ताली बजाई थी उसका बदला लेंगे। और तुम मरे तुम मुश्किल में पड़े, क्योंकि कामवासना कसम खाने से मिटती होती, इतनी आसान बात होती, तो सारी दुनिया कामवासना के बाहर हो गयी होती। अब यह ब्रह्मचर्य खींचेगा और यह कामवासना खींचेगी और इन दोनों के बीच तुम पिसोगे। दो पाटन के बीच अब तुम्हारी बुरी तरह मरम्मत होगी बार-बार तुम वासना में गिरोगे और बार-बार तुम अपने को सम्हाल कर बाहर निकालोगे और बार-बार गिरोगे। तुम्हारा जो अब तक थोड़ा-बहुत आत्म - गौरव था वह भी नष्ट हो जाएगा। तुम पाओगे : मुझ जैसा पापी कोई भी नहीं! मंदिर में जा कर लोग सिर्फ यही समझ कर लौटते हैं कि हम जैसा पापी कोई भी नहीं । अष्टावक्र कहते हैं. 'अव्रती! त्यागपरायण!' यही मैं भी तुमसे कहता हूं । तुम्हारा बोध ही तुम्हारा व्रत हो उससे ज्यादा व्रत की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें समझ में आ गई है बात, बस काफी है। इसके लिए समाज की स्वीकृति और समादर की कोई भी जरूरत नहीं है। तुम समझ गए, तुम्हें ब्रह्मचर्य में रस आने लगा बिलकुल ठीक है, अब व्रत की क्या जरूरत है? व्रत तो इतना ही बताता है कि रस अभी आया नहीं था, सिर्फ लोभ पैदा हुआ था। ब्रह्मचर्य का लोभ पैदा हुआ तो व्रत। अगर समझ में ही आ गया, तो तुम ऐसी तो कभी कसम नहीं खाते कि मैं कसम खाता हूं कि सदा दो और दो चार ही जोडूगा। तुम जानते हो कि दो और दो चार होते हैं, इसमें जोड़ना क्या है, कसम क्या खानी है? और अगर तुम जा कर किसी मंदिर-मस्जिद में कसम खाओ कि हे सदगुरु, मुझे आशीर्वाद दें, अब से मैं दो और दो चार ही जोडूगा, तो साफ है कि तुम विक्षिप्त हो। और जो तुम्हें आशीर्वाद दे, वह तुमसे भी आगे है विक्षिप्तता में। तुम्हारा दिमाग खराब है। तुम्हें शक है कि तुम दो और दो पांच जोड़ोगे । उस शक से लड़ने के लिए तुम इंतजाम कर रहे हो पहले से । तुम्हें अपनी भीतरी अवस्था का पता है कि जब मैं जोडूगा तो दो और दो पांच होंगे। 'नहीं-नहीं, कसम खा लो, पहले से इंतजाम कर लो !' वह भीतर तो तुम जानते ही हो कि दो और दो पांच होने वाले हैं, इसलिए कसम खा कर इंतजाम कर लो, रुकावट डाल दो कि दो और दो चार हों। लेकिन यह ज्ञान नहीं है,
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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