SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और यह अहंकार है; अब इन दोनों में संघर्ष चलेगा; एक युद्ध तुम्हारे भीतर पैदा होगा, महाभारत तुम्हारे भीतर चलेगा। तुम आ गए जोश-खरोश में, सुन रहे थे किसी साधु-संत की बात, उसने तुमको घबड़ा दिया कि अगर काम-वासना रही तो नर्क में सडोगे । और उसने खूब स्पष्ट चित्र खींचे, रंगीन, श्री डायमेंशनल, कि वहां आग की लपटें हैं, और कड़ाहे जल रहे हैं तेल के, और उन कड़ाहों में डाले जाओगे, मरोगे भी नहीं और सेंके भी जाओगे और उबाले भी जाओगे, और मरोगे भी नहीं, और कीड़े तुम्हारे शरीर में छेद बना-बना कर दौड़ेंगे, और मरोगे भी नहीं और छिद्र - छिद्र हो जाओगे । उसने खूब तस्वीर खींची रंगीन और तुम्हें बिलकुल घबड़ा दिया । उस घबड़ाहट के भावावेश के क्षण में तुम खड़े हो गए, तुमने कहा. मैं ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेता हूं । अब मरे ! घर तक लौटते-लौटते जब शांत हो जाओगे थोड़े, उद्विग्नता थोड़ा बैठेगी, मंदिर की हवा से थोड़े दूर जाओगे और तुम्हें याद आएगा. यह क्या कर बैठे ? अब फांसी लगी! व्रती हो गए ! और लोगों ने तालियां बजा दीं। और लोग तो कोई भी बुद्ध बन रहा हो तो ताली बजाते हैं। लोगों की तालियों से बड़े सावधान रहना । एक अदभुत फकीर थे. महात्मा भगवानदीन। वे कभी-कभी मेरे पास रुकते थे। मेरी तो छोटी उम्र थी, लेकिन उनका मुझसे बड़ा लगांव था। वे कभी मेरे गांव से गुजरते तो मेरे पास जरूर रुकते। उनकी एक खूबी थी जब वे बोलते, अगर कोई ताली बजा दे तो बड़े नाराज हो जाते। वे उठ कर ही खड़े हो जाते कि अब मैं बोलूंगा ही नहीं, क्यों ताली बजाई ? मैंने उनसे कहा कि लोग ताली बजा रहे हैं, आप इतने नाराज होते हैं? वे कहते लोग ताली ही तब बजाते हैं, जब कोई आदमी बुद्धपन करता है। मैंने जरूर कोई गलती की होगी। पहली तो बात, इन बुद्धओं को अगर मैं सच बात कहूं तो समझ में न आएगी, गलत कहूं तभी समझ में आती है और तभी ये ताली बजाते हैं। ताली बजाई कि मैं तत्काल समझ जाता हूं कि हो गई कोई गलती । वे ठीक कहते हैं। जैसा आदमी है उसको देख कर ऐसा ही लगता है। आदमी तो उसी बात पर ताली बजाता है जो उसको जंचती है। जब तुम किसी के ब्रह्मचर्य के व्रत लेने पर ताली बजाते हो, तो मतलब क्या है? तुम यह कह रहे हो कि लेना तो हम भी चाहते हैं, लेकिन अभी नहीं । तुमने हिम्मत की, बड़ा अच्छा; तुम आगे बढ़े, बड़ा अच्छा। तुम शहीद हो रहे हो, बड़ा अच्छा, जाओ । हमारी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं। मगर यही लोग जिन्होंने ताली बजाई, अब नजर रखेंगे। अब वे देखेंगे कि कहीं सिनेमा में तो नहीं बैठे हो ब्रह्मचर्य का व्रत ले कर ? यहां होटल में बैठे क्या कर रहे, क्लब में क्या कर रहे ? यह किसकी स्त्री के साथ चले जा रहे ? मेरे एक संन्यासी ने संन्यास लिया - एक युवक ने। वह कुछ दिन बाद मेरे पास आया कि मेरी पत्नी को भी संन्यास दे दो। तो मैंने कहा, मामला क्या है? उसने कहा कि मैं गरीब आदमी हूं अब मैं ये गेरुए वस्त्र पहन कर अपनी पत्नी के साथ कहीं जाता हूं तो लोग रोक लेते हैं कि किसकी पत्नी है? संन्यासी ! लोग भला धार्मिक न हों, लेकिन दूसरे को तो धार्मिक बनाने में उत्सुक रहते ही हैं !
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy