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________________ वासना संसार है, बोध मुक्ति है-प्रवचन-बारहवां दिनांक: 7 अक्टूबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। सूत्र: अष्टावक्र उवाच: कृताकृते न वंद्वानि कदा शांतानि कस्य वा। एवं ज्ञात्वेह निर्वेदाभव त्यागपरोऽव्रती ।। 83।। कस्यापि तात धन्यस्य लोकचेष्टावलोकनात्। जीवितेच्छा बुभुक्षा व बुभुत्सोयशमं गताः ।। 84।। अनित्यं सर्वमेवेदं तापत्रितय दूषितम्। असारं निंदितं हेयमिति निश्चित्य शाम्यति ।। 85।। काउसौ कालो वया: किं वा यत्र दवंदवानि नो नृणाम्। तान्युयेक्य यथाप्राप्तवर्ती सिद्धिमवाप्नुयात।। 86।। नाना मतं महर्षीणां साधुनां योगिनां तथा। दवष्टव निर्वेदमापन्न: को न शाम्यति मानवः।। 87।। कृत्वा मूर्तियरिज्ञानं चैतन्यस्य न किं गुरू:/ निर्वेदसमतायक्तया यस्तारयति संसते: ।। 8811 पश्य भूतविकारास्त्वं भूतमात्रान् यथार्थतः। तत्क्षणाद बंधनिर्मुक्त: स्वरूयस्थो भविष्यसि।। 89।। वासना एव संसार इति सर्वा विमुज्च ता:। तत्यागो वासनात्यागात् स्थितिरदय यथा तथा ।। 9011 अष्टावक्र ने कहा : 'किया और अनकिया कर्म, और दवंदव किसके कब शांत हुए हैं। इस प्रकार निश्चित जान कर इस संसार में उदासीन (निर्वेद) हो कर अव्रती और त्यागपरायण हो। ' कृताकृते च द्वंद्वानि कदा शातानि कस्य वा। एवं ज्ञात्वेह निवेंदाद्भव त्यागपरोग्वृती।।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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