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________________ मैं चाहता हूं? तुम कुछ बोलो, तम चाहते हो, मैं कछ बोल; अँधर कांप के रह जाते है, विस्मित हूं कैसे मुंह खोलूं तो दिया! तो तुम्हारे लिए एक कहानी: चार आदमियों ने तय किया कि मौन की साधना करेंगे। वे चारों गए, एक मंदिर में बैठ गए... चौबीस घंटे मौन से रहेंगे। कोई घड़ी भी नहीं गुजरी थी कि पहला आदमी बोला अरे अरे, पता नहीं मैं ताला लगा आया कि नहीं घर का! दूसरा मुस्कुराया, उसने कहा कि तुमने मौन खंडित कर दिया नासमझ, मूढ़! तूने बोल कर सब मौन खराब कर दिया! तीसरा बोला कि खराब तो तुम्हारा भी हो गया है! तुम क्या खाक उसको समझा रहे हो? चौथा बोला : हे प्रभु! एक हम ही बचे, जिसका मौन अभी तक खराब नहीं हुआ। बोले बिना रहा नहीं जाता। अगर बिना बोले रह जाओ तो बहुत कुछ हो। अगर मौन रह जाओ तो महान घट सकता है। शब्द से सत्य के घटने में कोई सहारा नहीं मिलता-शून्य से ही सहारा मिलता है। अगर ऐसा भाव मन में उठ रहा है मौन रह जाने का, तो रह ही जाओ, इतना भी मत कहो; इतना कहने से भी खराब हो जाएगा। मेरी मजबूरी है कि मुझे तुमसे बोलना पड़ रहा है क्योंकि तुम मेरे शून्य को न सुन सकोगे। काश, तुम मेरे शून्य को सुन सकते तो बोलने की कोई जरूरत न रह जाती! तो मैं यहां बैठता, तुम यहां बैठते-मंतक-मंतक, हृदय से हृदय की हो लेती चर्चा, शब्द बीच में न आते। ___ तुम्हें उसी तरफ तैयार कर रहा हूं। बोल भी इसलिए रहा हूं कि तुम्हें न बोलने की तरफ धीरे - धीरे सरकाया जा सके। तुमसे कह भी रहा हूं कि सुनो सिर्फ इसीलिए कि अभी तुम सुनने के माध्यम से ही शांत बैठ सकते हो, अन्यथा तुम शांत न बैठ सकोगे। फिर धीरे - धीरे, जब तुम सुनने में परम कुशल हो जाओगे, तो तुमसे कहूंगा अब सुनो, और अब मैं बोलूंगा नहीं, तुम सिर्फ सुनो। फिर मैं बिना बोले तुम्हारे पास बैलूंगा। फिर भी तुम सुन पाओगे। और जो अभी झलक-झलक आता है, वह बिलकुल साक्षात आएगा। जो अभी शब्द में थोड़ा-थोड़ा आता है, बूंद-बूंद आता है, वह फिर सागर की तरह आएगा। और अभी जो हवा के झोंके की तरह आता है-कभी पता चलता आया, कभी पता चलता नहीं आया-वह एक अंधड़-आधी की तरह आएगा और तुम्हें इबा देगा; और तुम्हें मिटा देगा; और तुम्हें बहा ले जाएगा। वह एक सागर की तूफानी लहर होगा, जिसमें तुम विलीन हो जाओगे। मैं बोल रहा हूं -सिर्फ इसलिए कि तुम्हें शून्य के लिए तैयार कर लूं। अभी मजबूरी है। तुमने देखा, छोटे बच्चों की किताबें होती हैं, तो उनमें अक्षर कम होते हैं, चित्र खूब होते हैं। अक्षर बड़े-बड़े होते हैं, बहुत थोड़े होते हैं-आम.. और बड़ा एक आम लटका होता है। क्योंकि अभी
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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