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________________ तुमने परिभाषा सुनी होगी। परिभाषाएं कहती हैं अच्छे काम करने वाला पुरुष संत है। मैं तुमसे कहना चाहता हूं. 'अच्छे काम करने वाला पुरुष संत है-इसमें तुमने बैलों को गाड़ी के पीछे रख दिया। 'संत से अच्छे काम होते हैं -तब तुमने बैल को गाड़ी के आगे जोता। अच्छे कामों से कोई संत नहीं होता; संत होने से काम अच्छे होते हैं। ऊपर से आंचरण ठीक कर लेने से कोई भीतर अंतस की क्रांति नहीं होती, लेकिन भीतर अंतस की क्रांति हो जाए, तो बाहर का आंचरण देदीप्यमान हो जाता है, दीप्ति से भर जाता है, आभा से आलोकित हो जाता है। और जमीन-आसमान का फर्क तुम देखोगे महावीर के चलने में और जैन मुनि के चलने में, बुद्ध के चलने में और बौद्ध भिक्षु के चलने में; जीसस के उठने –बैठने में और ईसाई के उठने –बैठने में। हो सकता है, दोनों बिलकुल एक-सा कर रहे हों। कभी-कभी तो यह हो सकता है, अनुकरण करने वाला मूल को भी मात कर दे। क्योंकि मूल तो सहज होगा, स्वस्फूर्त होगा; अनुकरण करने वाला तो यंत्रवत होगा। जो अभिनय कर रहा है, वह तो रिहर्सल करके, खूब अभ्यास करके करता है। लेकिन जो स्वभाव से जी रहा है, वह तो कोई रिहर्सल नहीं करता, कोई अभ्यास नहीं करता। जो उसकी अंतश्चेतना में प्रतिफलित होता है, वैसा जीता है, जब जैसा प्रतिफलित होता है वैसा जीता है। जब जैसा स्वभाव चलाए, चलना। जब जैसा स्वभाव कराए, करना! जब जैसा अंतस में उगे, उससे अन्यथा न होना। यही संन्यास है। यह घोषणा बड़ी कठिन है। क्योंकि इस घोषणा का परिणाम यह होगा कि तम्हारे चारों तरफ, जिनसे तुम जुड़े हो, उनको अड़चन मालूम होगी। वे तुम्हारी स्वतत्रता नहीं चाहते हैं; वे सिर्फ तुम्हारी कुशलता चाहते हैं। वे तुम्हारी आत्मा में उत्सुक नहीं है तुम्हारी उपयोगिता में उत्सुक हैं। और उपयोगिता यंत्र की ज्यादा होती है, आदमी की कम होती है-यह खयाल रखना। यंत्र की उपयोगिता बहुत ज्यादा है, क्योंकि वह काम ही काम करता है, मांग कुछ भी नहीं करता-न स्वतंत्रता मांगता, न हड़ताल करता, न झंझट-झगड़े खड़ा करता, न कहता है, यह ठीक है, यह ठीक नहीं है-जो आज्ञा, जो हुक्म यंत्र कहता है, बस, हम तैयार हैं! दबाओ बटन, बिजली जल जाती है। समाज भी चाहता है कि आदमी भी ऐसे ही हों-दबाओ बटन, बिजली जल जाए। स्वस्फूर्त व्यक्ति की बटनें नहीं होतीं, तुम उसकी बटन नहीं दबा सकते। कोई उपाय नहीं तुम्हें तुम्हारे हाथ में उसकी बटन दबाने का, वह अपना मालिक है। तुम अगर उसे गाली दो तो वह खड़ा हुआ सुन लेगा। तुम गाली दे कर भी उसकी क्रोध की बटन नहीं दबा सकते। तुम गाली दे वह खड़ा सुनता रहेगा; वह मुस्कुरा कर चल देगा। वह कहेगा कि हमारा दिल क्रोध करने का नहीं है। हम तुम्हारे गुलाम नहीं हैं कि तुमने जब चाहा गाली दे दी और हम तुम्हारे पंजे में आ गए। हम अपने मालिक हैं! तुम्हें देना है गाली देते रहो, यह तुम्हारा काम है-हम नहीं लेते। देना तुम्हारी स्वतंत्रता है, लें न लें, हमारी मालकियत है। तुमने दी धन्यवाद! तुमने इतना समय खराब किया हम पर बड़ी कृपा! अब हम जाते अपने घर, तुम अपने घर। जो अपना मालिक है, वही स्वतंत्र है। और मालिक कौन है? जिसने स्वयं को जाना, वही स्वयं का मालिक हो सकता है। जो स्वयं को ही नहीं जानता, वह मालिक तो कैसे होगा? उस जानने से,
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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