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________________ न चले तो तुम स्वस्थ । अगर शरीर का कहीं भी पता चले तो बीमार । बीमारी का मतलब क्या होता है ग्र सिर में जब दर्द होता है तो सिर का पता चलता है। सिर में दर्द न हो तो सिर का पता चलता ही नहीं। तुम सोचो, देखो। सिर की तुम्हें याद कब आती है गुम जब सिर में दर्द होता है। अगर कोई आदमी चौबीस घंटे सिर के संबंध में सोचने लगे तो समझना कि सिर उसका रुग्ण है। पैर में कांटा गड़ता है तो पैर का पता चलता है। जूता काटता है तो जूते का पता चलता है। अगर जूता काटता न हो तो जूते का पता चलता है? जिस चीज से पीड़ा होती है उसका हमें पता चलता है। जब पता चलता है तो उससे विपरीत को हम आदर्श बनाते हैं। आदर्श रुग्ण चित्त के लक्षण हैं। स्वस्थ व्यक्ति आदर्श नहीं बनाता; जो स्थिति है, उसको समझने की कोशिश करता है, उसको जीने की कोशिश करता है-ध्यान - पूर्वक, होशपूर्वक । और उसी होश से स्वास्थ्य फलित होता है। उसी होश से ब्रह्मचर्य फलित होता है, करुणा फलित होती है। तुम अपने क्रोध को समझो, क्रोध को जीयो - करुणा अपने आप आ जाएगी। आदर्श मत बनाओ। तुम अपनी कामवासना को पहचानो, दीया जलाओ होश का। तुम कामवासना में होशपूर्वक जाओ। ऐसे डरे-डरे, सकुचाते, परेशान, घबडाए हुए तने हुए नहीं जाना और जाना पड़ रहा है-ऐसे अपराध में डूबे हुए मत जाओ। इसमें कुछ सार न होगा। सहज भाव से जाओ। प्रभु ने जो दिया है अर्थ होगा। जो समग्र में उठ रहा है, उसमें अर्थ होगा। तुम यहां होते नहीं अगर वासना न होती; न तुम्हारे महात्मा होते, न ब्रह्मचर्य का उपदेश देने वाले होते। वे सब वासना के ही फल हैं। तो जिस वासना से बुद्ध जैसे लोग पैदा होते, उस वासना को गाली दोगे ? जिस वासना से महावीर जैसे फल लगते, उसको गाली दोगे ? जिस वासना से अष्टावक्र जन्मते, तुम उसे गाली देते थोड़ा संकोच नहीं करते? अगर ब्रह्मचर्य इस जगत में फला है तो वासना से ही फला है। फल को तो तुम आदर देते हो, वृक्ष को इंकार करते हो? तो तुम भूल कर रहे हो। तो तुम्हारे जीवन के गणित में साफ-सुथरापन नहीं, बड़ी उलझन है, बड़ा विभ्रम है। बुद्ध हों कि महावीर, कृष्ण हों कि मुहम्मद कि क्राइस्ट - सब आते हैं। वासना के सागर में ही ये लहरें उठती हैं और ब्रह्मचर्य की ऊंचाई पर पहुंच जाती हैं। सागर को धन्यवाद दो विरोध मत करो। जब मैं कहता हूं, सभी आदर्श खतरनाक हैं, तो मेरा मतलब इतना ही है कि जीवन पर्याप्त है, इसके ऊपर तुम और आदर्श मत थोपी, जीवन में गहरे उतरो । जीवन की गहराई में ही तुम उन मणियों को पाओगे, जिनको तुम चाहते हो । वासना में उतर कर मिलता है ब्रह्मचर्य। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सभी वासना से भरे लोगों को ब्रह्मचर्य मिल जाएगा या मिल गया है। मेरी शर्त खयाल में रखना । वासना में उतर कर मिलता है, लेकिन जो जागरूकता से उतरता है, बस उसी को मिलता है, जो साक्षी- भाव से उतरता है, उसी
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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