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________________ और धीरे – धीरे वासना में ही तुम्हें दिखाई पड़ना शुरू होता है-निर्वासना की पहली पहली झलकें। ब्रह्मचर्य की पहली झलकें वासना की गहराई में ही मिलती हैं। संभोग की आत्यंतिक गहराई में ही पहली दफे समाधि की किरण उतरती है। वैसी किरण जब उतर आती है, बस फिर घटना घट गई। फिर तुम उस किरण के सहारे चल पड़ो, सूरज तक पहुंच जाओगे। फिर तुम्हें कोई रोक सकता नहीं। लेकिन वह घटना उतनी ही स्वाभाविक है, जैसे वासना स्वाभाविक है, कामना स्वाभाविक है, ब्रह्मचर्य भी स्वाभाविक है। थोपा, आरोपित, आयोजित ब्रह्मचर्य दो कौड़ी का है। तुम हिंसक हो, अहिंसा का आदर्श बना लेते हो। सच तो यह है कि तुम आदमी का आदर्श देख कर बता सकते हो कि आदमी कैसा होगा, उल्टा कर लेना। अगर आदमी का आदर्श ब्रह्मचर्य हो तो समझ लेना कामी आदमी है। कामी के अतिरिक्त कौन ब्रह्मचर्य का आदर्श बनाएगा! अगर आदमी दान को आदर्श मानता हो, तो समझना लोभी है। अगर आदमी करुणा को आदर्श मानता हो, समझना क्रोधी है। अगर आदमी कहता हो, जीवन में शांति आदर्श है तो समझ लेना, अशांत आदमी है, विक्षिप्त आदमी है। तुम मुझे बता दो किसी आदमी का आदर्श और मैं बता दूंगा उसका यथार्थ क्या है। यथार्थ बिलकुल विपरीत होगा। इस गणित में तुम्हें कभी चूक न होगी। तुम पूछ लो आदमी से आपका आदर्श क्या है महानुभाव? और आप उनके यथार्थ से परिचित हो जाओगे। अगर आदमी कहे कि अचौर्य मेरा आदर्श है, तो अपनी जेब संभाल लेना; यह आदमी चोर है। क्योंकि चोर के लिए ही केवल अचौर्य का आदर्श हो सकता है। जो आदमी चोर नहीं है उसे तो खयाल भी नहीं आएगा कि अचौर्य भी आदर्श है। अगर वह कहे कि ईमानदारी मेरा आदर्श है, तो वह बेईमान है। तुम आदर्शों को मत देखना। तुम तत्क्षण विपरीत खोजना-और तुम्हें अचानक उस आदमी के जीवन की कुंजी मिल जाएगी। जिस आदमी के जीवन में ईमानदारी है उसे ईमानदारी का खयाल ही नहीं रह जाता; जो है, उसका खयाल ही भूल जाता है। स्वस्थ आदमी के जीवन में कभी भी स्वास्थ्य का आदर्श नहीं होता; बीमार आदमी के जीवन में होता है। तुम बीमारों को देखोगे प्राकृतिक चिकित्सा की किताबें पढ़ रहे हैं, ऐलोपैथी, होम्योपैथी, बायोकेमिस्ट्री और न मालूम कहां-कहां से खोज कर ले आते हैं। बीमार आदमी को तुम हमेशा स्वास्थ्य के शास्त्र पढ़ते देखोगे। स्वस्थ आदमी को हैरानी होती है कि कुछ और पढ़ने को नहीं है? यह क्या पढ़ रहे हो तुम? प्राकृतिक चिकित्सा, कि पेट पर मिट्टी बांधो, कि सिर पर गीला कपडा रखो, कि टब में लेटे रहो, कि उपवास कर लो, कि ऐसा करो, कि एनीमा ले लो, यह तुम कर क्या रहे हो? यह कोई...? वह आदमी कहेगा, स्वास्थ्य मेरा आदर्श है। लेकिन यह आदमी बीमार है। यह बुरी तरह से बीमार है। इसका रोग भयानक है। यह रोग से ग्रस्त है। और आदर्श बनाना कहीं और से नहीं आता तुम्हारे रोग से आता है। स्वस्थ आदमी को स्वास्थ्य का पता नहीं चलता। वस्तुत: स्वास्थ्य की परिभाषा यही है कि जब तुम्हें शरीर का बिलकुल पता
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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