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________________ जिसे कभी पूरा पकड़ पाया नहीं, जो कभी किसी गीत में समाया नहीं किसी एक गीत में वह अट गया दिखता तो कवि दूसरा गीत ही क्यों लिखता? तुम्हें बहुत बार लगेगा अष्टावक्र वही कहे जाते हैं जनक वही दोहराए चले जाते हैं। कवि ने गीत लिखे नये-नये बार-बार पर उसी एक विषय को देता रहा विस्तारजिसे कभी पूरा पकड पाया नहीं जो कभी किसी गीत में समाया नहीं एक गीत हार जाता, कवि दूसरा गीत रचता है। लेकिन जो उसने पहले गीत में गाना चाहा था वही वह दूसरे गीत में गाना चाहता है। विन्सेंट वानगाग को किसी ने पूछा कि तुमने अपने जीवन में कितने चित्र बनाये हैं? उसने कहा कि बनाये तो बहुत, लेकिन बनाना एक ही चाहता था। ठीक कहा। उस एक को बनाने की चेष्टा में बहुत बने और वह एक हमेशा रह जाता है, वह बन नहीं पाता है। रवींद्रनाथ मरण-शैया पर थे। उनकी आंखों से आंसू टपकते देख कर उनके एक मित्र ने कहा, आप, और रोते हैं? अरे धन्यवाद दो! प्रभु ने तुम्हें सब कुछ दिया। तुमसे बड़ा महाकवि नहीं हुआ। तुमने छह हजार गीत लिखे जो संगीत में बंध सकते हैं। पश्चिम में शैली की बड़ी ख्याति है; उसने भी दो हजार ही गीत लिखे हैं जो संगीत में बंध जाएं। तुमने छह हजार लिखे। और क्या चाहते हो? अब किसलिए रोते हो? अब तो शांति से विदा हो जाओ। रवींद्रनाथ हंसने लगे। उन्होंने कहा, इसलिए रोता भी नहीं। इधर प्रभु से निवेदन कर रहा था भीतर-भीतर, आंख में आंसू आ गये। निवेदन कर रहा था, यह भी कैसा मजाक है! अभी तो मैं साज बिठा पाया था। अभी गीत गाया कहां? अभी तो साज बिठा पाया था। और यह विदा की बेला आ गई। यह कैसा अन्याय है? ये छह हजार गीत जो मैंने गाये, यह तो सिर्फ साज का बिठाना था। __ जैसे तुमने देखा, तबलची तबले को ठोंकता-पीटता, वीणाकार वीणा को कसता। उस वीणा को कसने से जो आवाज निकलती है, तारों को खींचने से, जांचने से जो आवाज निकलती है, उसे संगीत मत समझ लेना; वह तो केवल अभी आयोजन किया जा रहा है। रवींद्रनाथ ने कहा, अभी तो आयोजन पूरा होने को आया था। अब मैं गा सकता था, ऐसा लगता था, और यह विदा होने का वक्त आ गया, यह कैसा अन्याय है? जिन्होंने भी कुछ कहने की कोशिश की है, सभी का यही अनुभव है। जो गाना है, वह अनगाया रह जाता है। जो कहना है, अनकहा छूट जाता है। फिर दूसरी तरफ से चेष्टा होती है कि चलो, इस आयाम से नहीं हुआ, दूसरे आयाम से हो
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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