SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिखाई न पड़ता हो - तुम किससे प्रार्थना कर रहे हो? और वह है भी, इसका कुछ पक्का नहीं है। आदमी ने अपने भय में भगवान खड़े किए हैं और अपने दुख में मूझातयां गढ़ ली हैं, और अपनी पीड़ा में किसी का सहारा खोजने के लिए आकाश में आकार निर्मित कर लिए हैं। इनसे कुछ भी न होगा। अष्टावक्र या बुद्ध या कपिल तुमसे इस तरह की बातें करने को नहीं कहते। तो कहते हैं, जो हो सकता है वह एक बात है कि तुम्हारे भीतर चैतन्य है, इतना तो पक्का है; नहीं तो दुख का पता कैसे चलता ? दुख का जिसे पता चल रहा है उस चैतन्य को और निखारो, साफ-सुथरा करो! कूड़े-कर्कट से अलग करो। उसको प्रज्वलित करो, जलाओ कि वह एक मशाल बन जाए। उसी मशाल में मुक्ति है। आखिरी सवाल - और आखिरी सवाल सवाल नहीं है : एकटि नमस्कारे प्रभु, एकटि नमस्कारे! सकल देह लूटिए पडूक तोमार ए संसारे घन श्रावण मेघेर मतो रसेर भारे नम नत एकटि नमस्कारे प्रभु, एकटि नमस्कारे! समस्त मन पडिया थाक, तव भवन -द्वारे नाना सरेर आकल धारा मिलिए दिए आत्महारा कटि नमस्कारे प्रभु, एकटि नमस्कारे! समस्त गान समाप्त होक, नीरव पारावारे हंस येमन मानस - यात्री तेमन सारा दिवस - रात्रि एकटि नमस्कारे प्रभु, एकटि नमस्कारे!
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy