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________________ कुछ लोग हैं जो स्वर्ग पाने में लगे हैं : वहां पद मिलना चाहिए वहां प्रतिष्ठा..। कुछ लोग हैं जो इस संसार की कमाई कर रहे हैं, कुछ लोग परलोक की कमाई कर रहे हैं। किन्हीं का, बैंक यहां है, किन्हीं का दर स्वर्गों में। पर कोई फर्क नहीं पड़ता। दोनों कमाने में लगे हैं। संत वही है जो का है, कैसा कमाना? यह सारा जगत मेरा है। इस सारे जगत का मैं हूं। मुझमें और इस जगत में रत्ती मात्र भी फासला नहीं। अब तो इस मंजिल पर आ पहुंचे हैं तेरी चहत में, खुद को तुझ में पाते हैं हम तुझको खुद में पाते हैं। अब यह मैं-तू का फासला नहीं है। यह सिर्फ भाषा का खेल है, शायद लीला है। एक तरंग दूसरी तरंग से अलग नहीं है। अब तो इस मंजिल पर आ पहुंचे हैं तेरी चहत में, खुद को तुझ में पाते हैं हम तुझको खुद में पाते हैं। ऐसी घड़ी-इति ज्ञान! जमाले-निगारां पे अशआर कह कर, करारे-दिले - आशिकां हो गए हम। शनासा-ए-राजे-जहां हो गए हम, तो बेफिक्रे -को -जिया हो गए हम। संसार के रहस्य से परिचित हो गए। तो फिर सब लाभ-हानि से निश्चित हो गए यहां न कुछ लाभ है, यहां न कुछ हानि है; क्योंकि यहां हमारे अतिरिक्त कोई है ही नहीं। न तो कोई छीन सकता है, न कोई दे सकता है। न तो लोभ में कुछ अर्थ है, न क्रोध में कुछ अर्थ है। क्रोध ऐसा ही है जैसे कोई अपना ही चांटा अपने ही गाल पर मार ले। लोभ ऐसा ही है जैसे कोई अपने ही घर में अपनी ही चीजों को छिपा कर, सम्हाल कर रख ले-अपने से ही-कि कहीं चोरी न कर बैठू! जमाले -निगारां पे अशआर कह कर, करारे-दिले- आशिकां हो गए हम। शनासा-ए-राजे-जहां हो गए हम! जान लिया शनासा-ए-राजे-जहां हो गए हम! जान लिया रहस्य-जगत का, जीवन का, संसार का। रहस्य खुल गया! तो बेफिक्रे -सूदो -जिया हो गए हम। अब न कुछ हानि है, अब न कोई लाभ है। 'आप किससे कहते हैं-जनक ने कहा-'सुख-दुख में समान हो जा? यहां सुख है कहा? दुख है कहां? आप कहते हैं, जीवन-मृत्यु में समभाव रख। समभाव रखने का तो मतलब ही यह हुआ कि
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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