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________________ मुल्ला ने कहा, कर तो लूं लेकिन इसके चार कारण हैं, कर नहीं सकता हूं। चार कारण मैंने कहा, ब्रह्मचारी भी चार कारण नहीं गिना सके हैं अब तक शादी न करने के, तू बता। चार कारण.. उसने कहा चार कारण हैं, तीन लडकिया और एक लडका। इन चार कारणों के कारण विवाह कर सकता नहीं। करना तो मैं भी चाहता हूं। मगर ये अटके हैं। इनसे फांसी लगी है। भोगी त्यागी के पैर छूने जाता है। लेकिन हजार कारण अटके हैं उसके गले में, अन्यथा वह भी त्यागी होना चाहता। तुम क्यों जाते हो महात्मा के चरण छूने? तुम सोचते हो, कभी ऐसे सदभाग्य होंगे मेरे भी कि मैं भी महात्मा हो जाऊंगा! अभी नहीं हो सकता तो कम से कम चरण तो छू सकता हूं। अभी नहीं हो सकता तो कम से कम समादर तो दे सकता हूं। तुम्हारा समादर तुम्हारी अपनी ही भविष्य की आकांक्षाओं के चरणों में चढ़ाए गए फूल हैं। तुम किसी महात्मा के चरण थोड़े ही छू रहे हो; तुम अपने ही भविष्य की प्रतिमा के चरणों में झुक रहे हो। कभी अगर तुम्हें मौका मिला, चार कारण न रहे, तब खतरा आएगा। तब तुम छलांग लगा कर संन्यासी हो जाओगे, त्यागी हो जाओगे। और मैं त्यागियों को जानता हूं वे त्यागी हो कर तडूफ रहे हैं। मुझसे एक सत्तर-पचहत्तर साल के के संन्यासी ने कहा कि ' आपसे कह सकता हूं किसी और से तो कह भी नहीं सकता। यह दर्द ऐसा है, कहो किससे! लोग मेरे पैर छूने आते हैं। उनसे तो मैं कह नहीं सकता। वे तो मझे आदर देते हैं, उनसे तो सत्य कहा नहीं जा सकता; लेकि कहता हूं कि चालीस साल हो गए मुझे संन्यास लिए। ' जैन मुनि हैं, चालीस साल से सब त्यागा है, लेकिन कुछ मिला नहीं। ' अब तो यह शक होने लगा है इस बुढ़ापे में,' उन्होंने मुझसे कहा, 'कि कहीं मैंने भूल तो नहीं कर दी! अब तो रात मुझे सपने आने लगे हैं कि इससे तो बेहतर था मैं ग्रहस्थ ही रहता। घर-द्वार था, पत्नी थी, बच्चे थे, इससे तो मैं वहीं बेहतर था। अब तो मुझे शक होने लगा है अपने उपक्रम पर। चालीस साल पहले की बातें मुझे अब प्रीतिकर लगने लगी कि वही ठीक था, इससे तो वही ठीक था। अब वह लहर जो चालीस साल पहले छोड़ी थी, अब फिर झाग से भर गई है। अब उस लहर के सिर पर फिर सुंदर झाग ने मुकुट रचा दिए फिर इंद्रधनुष पैदा हो रहे हैं।' ___यह तुम चकित होओगे जान कर कि बुरे आदमी अच्छे आदमी होने के सपने देखते हैं। अच्छे आदमी बुरे आदमी होने के सपने देखते हैं। अगर तुम साधु-संतो के सपनों में झांक पाओ तो तुम घबड़ा जाओगे। वहा तुम अपराधियों को छिपा पाओगे। और अगर तुम जेलखाने में जाओ और अपराधियों के सपनों में झांको, उनकी खोपड़ी में खिड़की बना लो और उनका सपना देखो, तुम चकित हो जाओगे, कि वे सब ऊब गए हैं, थक गए हैं बुरा कर-करके, अब वे भले होना चाहते हैं। अब किसी तरह उनको एक बार मौका मिल जाए तो वे दुनिया में सिद्ध कर देना चाहते हैं कि वे अपराधी नहीं हैं, संत हैं। यह दूसरी बात है कि जेल से जब वे छूटेंगे दस-पंद्रह साल बाद, तब फिर बाहर की लहरें ताजी मालूम होने लगेंगी। यह दूसरी बात है। लेकिन आदमी हमेशा वहा के सपने देखता है जहां नहीं
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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