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________________ आधुनिक काव्य की यही खूबी है। उसने व्याकरण छोड़ी, लयबद्धता पुराने ढंग की, मात्रा, छंद का आयोजन छोड़ा। नई कविता शुद्ध कविता है। पुरानी कविता से उसने बड़ी ऊंचाई ली है। यह बहुत लोगों की समझ में नहीं आती, क्योंकि बहुत लोग सीमा के बाहर को नहीं समझ पाते। बहुत लोग व्याकरण के बाहर को नहीं समझ पाते। बहुत से लोग परिभाषा के बाहर को नहीं समझ पाते। चित्रों में भी हुआ है, नई मूर्तियों में भी हुआ है नई कविता में भी हुआ है। सारे जगत में एक विस्फोट हुआ है-वह विस्फोट हृदय को बहाने से है। बुद्धि के पत्थर पड़े रहने दो। इससे हानि नहीं है। इससे बुद्धि के इन पत्थरों से थोड़ी समृद्धि ही बढ़ेगी। और कवि को चाहिए प्रेम, चाहिए प्रार्थना, चाहिए परमात्मा; अन्यथा अड़चन रहेगी। जब तक कविता भजन नै बने, तब तक दुविधा रहेगी। और जब तक कविता प्रार्थनापूर्ण न हो जाए, अर्चना न बने, नैवेद्य न बने, तब तक अड़चन रहेगी । कौन है अंकुश इसे मैं भी नहीं पहचानता हूं । पर सरोवर के किनारे कंठ में जो जल रही है, उस तृषा, उस वेदना को जानता हूं । आग है कोई नहीं जो शांत होती और खुल कर खेलने से निरंतर भागती है। टूट गिरती हैं उमंगें बाहुओं का पाश हो जाता शिथिल है, अप्रतिभ में, फिर उसी दुर्गम जलधि में डूब जाता फिर वही उद्विग्न चिंतन फिर वही पृच्छा चिरंतन रूप की आराधना का मार्ग आलिंगन नहीं तो और क्या है? स्नेह का सौंदर्य को उपहार रस चुंबन नहीं तो और क्या है? रक्त की उत्तप्त लहरों की परिधि के पार कोई सत्य हो तो, चाहता हूं भेद उसका जान लूं पंथ औ सौंदर्य की आराधना का व्योम में यदि शून्य की उस रेख को पहचान लूं।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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