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________________ क्रांति: निजी और वैयक्तिक-प्रवचन-पांचवां दिनांक: 30 सितंबर, 1976; श्री रजनीश आश्रम, पूना। प्रश्न सार: पहला प्रश्न : आप आज मौजूद हैं, तो भी मनुष्य नीचे और नीचे की ओर जा रहा है, जबकि बद्धों के आगमन पर मनुष्यता कोई शिखर छूने लगती है। हजारों आंखें आपकी ओर लगी हैं कि शायद आपके द्वारा फिर नवजागरण होगा और धर्म का जगत निर्मित होगा। कृपया बताएं कि यह विस्फोट कब और कैसे होगा? क्योंकि बदलना तो दूर, उलटे लोग आपका ही विरोध कर रहे हैं। पहली बात, मनुष्यता सदा ऐसी की ऐसी ही रही है। कुछ विरले मनुष्य बदलते हैं मनुष्यता जरा भी नहीं बदलती बाहर की स्थितियां बदलती हैं, व्यवस्थाएं बदलती हैं, भीतर मनुष्य वैसा का ही वैसा रहता है! तो पहले तो इस भ्रांति को छोड़ दो कि आज का मनुष्य पतित हो गया है। सदा का मनुष्य ऐसा ही था। बुद्ध के समय में भी लोग ऐसे ही प्रश्न पूछते हैं बुद्ध से, कि आज का मनुष्य पतित हो गया है, आप कुछ करें। लाओत्सु से भी ऐसे ही प्रश्न, कन्फ्यूशियस से भी ऐसे ही प्रश्न। पुराने से पुराना शास्त्र खोज लें, पुराने से पुराना शास्त्र यही रोना रोता है कि मनुष्य पतित हो गया है। बेबिलोन में छह हजार वर्ष पुरानी एक ईंट मिली है जिस पर शिलालेख है। उस शिलालेख में यही लिखा है कि आज के मनुष्य को क्या हो गया, पतित हो गया! छह हजार साल पहले भी यही बात है। हर समय के आदमी ने ऐसा सोचा है कि आज का मनुष्य पतित हो गया है। इसके पीछे कुछ मनोवैज्ञानिक कारण हैं। अतीत के मनुष्यों का तो तुम्हें पता नहीं। उनके संबंध में तो तुम कुछ भी नहीं जानते। बुद्ध के संबंध में तो तुम कुछ जानते हो लेकिन बुद्ध किन मनुष्यों के बीच जी रहे थे उनके संबंध में तुम कुछ भी नहीं जानते हो। बुद्ध के संबंध में तो शास्त्र हैं, उनकी महिमा के गीत हैं, उनकी महिमा के गीत को तुम उस समय की मनुष्यता
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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