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________________ ष्टावक्र संहिता एक अनूठा संवाद है। आध्यात्मिक साधना के जगत में संवाद तो बहुत हुए लेकिन यह संवाद सर्वथा बेमिसाल है। यह संवाद कहोड ऋषि के पुत्र अष्टावक्र और राजा जनक के बीच घटित हुआ। अष्टावक्र के स्थूल शरीर के आठ अंग टेढ़े थे, इसलिए वे अष्टावक्र कहलाए। ओशो सर्वांग सुंदर किन एक और तल पर स्वभाव के तल पर. अष्टावक्र और उनमें समानता है। यद्यपि ओशो को जो कहना है सरलता से कहते हैं. तथापि वे इस अदा से कहते हैं कि पंडित-परोहित सब भडक उठते हैं। ऐसे ही पंडित-पुरोहित राजा जनक के दरबार में अष्टावक्र की वक्रता देखकर हंस पड़े थे। यहां दोनों में, अष्टावक्र और ओशो में समानता पूरी होती है। - अष्टावक्र को जनक जैसे प्रश्न करने वाले मिले थे। जनक स्वयं ज्ञानी थे। लेकिन ज्ञान कभी अपने-आप में पूर्ण नहीं होता, यह जानते हुए राजा जनक इस बारह वर्षीय अष्टावक्र के पैर छूते थे। ओशो के लिए कोई राजा जनक नहीं है। यूं भी, नम्रता से प्रणाम करने वाले सभी व्यक्ति जनक नहीं बन जाते। वे जिज्ञासु हो सकते हैं। अपेक्षा से भरी आंख और हृदय से जिज्ञासा करने वाले अनेक हैं लेकिन जनक जैसे ज्ञान-वृद्ध बालक हर जमाने में पैदा नहीं होते। - ओशो ने आज के संदर्भ में जनक-अष्टावक्र के संवाद को पुनरुज्जीवित किया है। प्राचीन प्रज्ञापुरुषों के प्रश्न और उनके उत्तर ओशो के सशक्त माध्यम से आज समसामयिक हो गये हैं। सदियों पार से जनक प्रश्न करते हैं और अष्टावक्र ने सदियों पहले उनके उत्तर दिये हैं, जिन्हें ओशो वर्तमान के धरातल पर जीवंत करते हैं। वस्तुतः न तो प्रश्न बदलते हैं और न ही उत्तर बदलते हैं, सिर्फ नये परिवेश में, प्रश्न पूछे जाने का ढंग और उत्तर के संदर्भ में एक उत्क्रांति होती है। जनक का प्रश्न सीधा-सादा है : ज्ञान कैसे प्राप्त होता है? मुक्ति कैसे मिलती है? वैराग्य कैसे प्राप्त होता है? यह सब, हे प्रभु! मुझे बतायें। ___ बारह साल के बालक में राजा जनक ने भगवत्ता देखी। इसीलिए वह 'प्रभु' संबोधन कर सकते ओशो को उत्तर देने पसंद आएं ऐसे ये प्रश्न हैं। फिर से सदियां पार कर यह प्रश्न आधुनिक
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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