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________________ प हला सूत्र : 'अष्टावक्र ने कहा, तू सबका एक द्रष्टा है और सदा सचमुच मुक्त है। तेरा बंधन तो यही है कि तू अपने को छोड़ दूसरे को द्रष्टा देखता है । ' यह सूत्र अत्यंत बहुमूल्य है। एक-एक शब्द इसका ठीक से समझें ! 'तू सबका एक द्रष्टा है। एको द्रष्टाऽसि सर्वस्य ! और सदा सचमुच मुक्त है।' साधारणतः हमें अपने जीवन का बोध दूसरों की आंखों से मिलता है। हम दूसरों की आंखों का 'दर्पण की तरह उपयोग करते हैं। इसलिए हम द्रष्टा को भूल जाते हैं, और दृश्य बन जाते हैं। स्वाभाविक भी है। . छोटा बच्चा पैदा हुआ। उसे अभी अपना कोई पता नहीं । वह दूसरों की आंखों में झांककर ही देखेगा कि मैं कौन हूं । अपना चेहरा तो दिखायी पड़ता नहीं; दर्पण खोजना होगा। जब तुम दर्पण में अपने को देखते हो तो तुम दृश्य हो गये, द्रष्टा न रहे। तुम्हारी अपने से पहचान ही कितनी है ? उतनी जितना दर्पण ने कहा । मां कहती है बेटा सुंदर है, तो बेटा अपने को सुंदर मानता है। शिक्षक कहते हैं, स्कूल में, बुद्धिमान हो, तो व्यक्ति अपने को बुद्धिमान मानता है । कोई अपमान कर देता है, कोई निंदा कर देता है, तो निंदा का स्वर भीतर समा जाता है। इसलिए तो हमें अपना बोध बड़ा भ्रामक मालूम होता है, क्योंकि अनेक स्वरों से मिलकर बना है; विरोधी स्वरों से मिलकर बना है। किसी ने कहा सुंदर हो; और किसी ने कहा, 'तुम, और सुंदर ! शक्ल तो देखो आईने में!' दोनों स्वर भीतर चले गये, द्वंद्व पैदा हो गया। किसी ने कहा, बड़े बुद्धिमान हो; और किसी ने कहा, तुम जैसा बुद्धू आदमी नहीं देखा - दोनों स्वर भीतर चले गये, दोनों भीतर जुड़ गये। बड़ी बेचैनी पैदा हो गयी, बड़ा द्वंद्व पैदा हो गया। इसीलिए तो तुम निश्चित नहीं हो कि तुम कौन हो। इतनी भीड़ तुमने इकट्ठी कर ली है मतों की ! इतने दर्पणों में झांका है, और सभी दर्पणों ने अलग-अलग खबर दी ! दर्पण तुम्हारे संबंध में थोड़े ही खबर देते हैं, दर्पण अपने संबंध में खबर देते हैं। 1 तुमने दर्पण देखे होंगे, जिनमें तुम लंबे हो जाते हो; दर्पण देखे होंगे, जिनमें तुम मोटे हो जाते।
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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