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कृत्य नहीं है, खोज नहीं है। परमात्मा मिला ही हुआ है— तुम जरा हलके हो जाओ; तुम जरा शांत हो जाओ तुम जरा रुको। अचानक तुम पाओगे वह सदा से था !
आखिरी प्रश्न : हमारे शरीर में कोई बीस अरब कोशिकाएं हैं और शरीर में प्रतिक्षण रासायनिक प्रतिक्रिया होती रहती है। आप या अष्टावक्र जब कहते हैं कि द्रष्टा बनो, तब यह बात आप किससे कहते हैं ?
य ह कौन है जो कह रहा है कि शरीर में
बीस अरब कोशिकाएं हैं? निश्चित
ही कोशिकाएं नहीं कह रही हैं। एक कोशिका बाकी कोशिकाओं का हिसाब भी नहीं लगा सकती। ये बीस अरब कोशिकाएं हैं शरीर में, अरबों-खरबों सेल हैं शरीर में - यह कौन कह रहा है? यह किसने पूछा? यह किसको पता चला ? जरूर तुम्हारे भीतर कोशिकाओं से भिन्न कोई है, जो गिनती कर लेता है कि बीस अरब कोशिकाएं हैं।
'हमारे शरीर में कोई बीस अरब कोशिकाएं हैं और शरीर में प्रतिक्षण रासायनिक प्रतिक्रिया होती रहती है। आप या अष्टावक्र जब कहते हैं कि द्रष्टा बनो, तब यह बात आप किससे कहते हैं ?'
उसी से जो कह रहा है कि बीस अरब कोशिकाएं हैं।
‘यदि मस्तिष्क की कोशिकाओं से कहते हैं तो बात व्यर्थ है; क्योंकि बुद्धि नश्वर है।'
नहीं, हम कह भी नहीं रहे मस्तिष्क की कोशिकाओं से। हम तुमसे कह रहे हैं। अष्टावक्र भी तुमसे बोल रहे हैं। अष्टावक्र इतने बुद्धू नहीं कि तुम्हारे मस्तिष्क की कोशिकाओं से बोल रहे हों । तुमसे बोल रहे हैं ! तुम्हारा होना तुम्हारी कोशिकाओं के पार है। तुम कोशिकाओं का उपयोग कर रहे हो, सच है। जैसे एक कार में बैठा हुआ ड्राइवर कार चला रहा है, दौड़ा जा रहा है कार की गति से दौड़ा जा रहा है, सौ मील प्रति घंटे चला जा रहा है; लेकिन फिर भी वह जो ड्राइवर भीतर है, वह कार नहीं है। और अगर एक सिपाही सीटी बजाये कि रुको और वह पूछे कि 'किससे कह रहे हैं ? – कार के इंजिन से ?' क्योंकि चल तो इंजिन रहा है । 'किससे कह रहे हैं ? – पेट्रोल से ?' क्योंकि चला तो पेट्रोल रहा है । 'किससे कह रहे हैं? – पहियों से ?' क्योंकि दौड़ तो पहिये रहे हैं। तो क्या कहेगा पुलिस का सिपाही ? वही मैं तुमसे कहता हूं कि सीटी तुम्हारे लिए बजा रहे हैं।
'यदि आप आत्मा को जगा रहे हैं तो भी बात व्यर्थ है, क्योंकि आत्मा जागी ही हुई है । उसको
समाधि का सूत्र : विश्राम
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