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________________ जहां तुम सहज पहुंच सकते थे, वहां तुम असहज हो कर पहुंच रहे हो तो दुःसाध्य मालूम होता है। तुम्हारे पहुंचने में भूल हो रही है। लेकिन असाध्य को आदमी क्यों चुनता है ? यह भी समझ लेना चाहिए। सिर के बल चलने का मजा क्या है, जब कि तुम्हारे पास पैर हैं ? सिर के बल चलने का एक मजा है, और वह मजा यह है... मजा है अहंकार का मजा ! मुल्ला नसरुद्दीन एक झील में मछलियां मार रहा था। घड़ी दो घड़ी मैं देखता रहा, देखता रहा : उसकी मछलियां पकड़ में कुछ आती नहीं; झील में मछलियां हैं भी नहीं, ऐसा मालूम होता है। मैंने उससे पूछा : ‘नसरुद्दीन ! इस झील में मछलियां मालूम नहीं होतीं, तुम कब तक बैठे रहोगे ? वह पास ही दूसरी झील है, वहां क्यों नहीं मछलियां मारते ? यहां कोई दूसरा मछुआ दिखाई भी नहीं पड़ता; वहीं सब मछुए हैं।' नसरुद्दीन ने कहा : 'वहां मारने से सार ही क्या ! अरे वहां इतनी मछलियां हैं कि मछलियों को तैरने के लिए जगह भी नहीं है। वहां मारी तो क्या मारी ! यहां मछली मारो तो कोई बात ।' असाध्य में भी आकर्षण है। जितना असाध्य काम हो उतना अहंकार मजबूत होता है। यहां मछली मारो तो कुछ है। जो सभी कर रहे हैं, वही तुमने किया तो क्या सार है ? सभी पैर के बल चल रहे हैं, तुम भी चले, तो क्या मजा ? सिर के बल चलो ! मेरे देखे, परमात्मा से कोई संबंध नहीं है कठिनाइयों का; कठिनाइयों का संबंध अहंकार से है । अहंकार कठिन को करने में मजा लेता है। क्योंकि सरल तो सभी करते, उसमें क्या सार है ? अगर तुम किसी से कहो कि हम पैर के बल चलते हैं तो लोग कहेंगे, 'तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है ? सभी चलते हैं।' लेकिन अगर तुम सिर के बल चलो तो अखबारों में नाम छपेगा; तो लोग तुम्हारे पास आने लगेंगे; लोग तुम्हारे चरणों में सिर झुकायेंगे कि तुम्हें कोई सिद्धि मिल गई है कि तुम सिर के बल चलते हो । अहंकार की पूजा तभी हो सकती है जब तुम कुछ असाध्य करो। जैसे हिलेरी चढ़ गया एवरेस्ट पर, तो सारी दुनिया में खबर हुई । अब तुम जाओ और पूना की छोटी-मोटी पहाड़ी पर चढ़ कर खड़े हो जाओ, और झंडा लगाने लगो और तुम कहो कि 'कोई अखबार वाला भी नहीं आ रहा है, कोई फोटोग्राफर भी नहीं आ रहा है— मामला क्या है ? आखिर यह भेदभाव क्यों हो रहा है? हिलेरी के साथ इतना शोरगुल मचाया - इतिहास में नाम अमर रहेगा सदा के लिए! और हमारा कुछ भी नहीं हो रहा । हम भी वही कर रहे हैं; उसने भी झंडा ही गाड़ा । ' लेकिन एवरेस्ट पर चढ़ना कठिन है। पचास-साठ साल से लोग चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, तब एक आदमी चढ़ पाया, इसलिए। धीरे-धीरे वहां रास्ता बन जायेगा, बस जाने लगेगी, कभी न कभी जायेगी, सदा इतनी देर तक एवरेस्ट अपने को बचा नहीं सकता आदमी से। जब एक आदमी पहुंच गया तो सिलसिला शुरू हो गया। अभी कुछ देर पहले औरतें भी पहुंच गईं। जब औरतें भी पहुंच गईं तो अब और पहुंचने को क्या बाकी रहा! अब सब धीरे-धीरे पहुंच रहे हैं। थोड़े दिन में वहां होटलें और बसें और सब पहुंच जायेंगी । फिर तुम फिर जा कर फिर झंडा गाड़ना, जब बस वगैरह सब चलने लगे वहां — तुम कहोगे : यह वही - समाधि का सूत्र : विश्राम 45
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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