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________________ चलती है इसके संबंध में । कुछ मनोवैज्ञानिक, विशेषकर आर. डी. लैंग और उनके साथी, एक बड़ा आंदोलन चलाते हैं कि बहुत-से पागल पागलखानों में बंद हैं जो पागल नहीं हैं। अगर वे पूरब में पैदा होते तो परमहंसों की तरह उनका आदर-सम्मान होता है। आर. डी. लैंग को पता नहीं है, इससे उलटी घटना पूरब में घट चुकी है: यहां कई पागल हैं जो परमहंस समझे जाते हैं। मगर आदमी आदमी है। यहां पूरब में कई पागल परमहंस समझ लिये गये हैं । मगर भूल-चूक होती है, क्योंकि दोनों की सीमाएं एक-दूसरे पर पड़ जाती हैं। तो यह शक स्वाभाविक है। एक ही बात खयाल रखना इसमें आनंद बढ़ रहा हो, घबड़ाना मत। मगर आनंद पागलपन के : कारण भी बढ़ सकता है। सुरक्षा की कसौटी क्या है ? सुरक्षा की कसौटी यह है : तुम्हारा आनंद बढ़ रहा हो और तुम्हारे कारण किसी का दुख न बढ़ रहा हो तो बेफिक्री से जाना । तुम्हारा आनंद किसी की हिंसा, किसी पर आक्रमण, किसी को दुख देने पर निर्भर न हो, तो फिर पागलपन से डरने की कोई वजह नहीं है। अगर पागल भी हो रहे हो तो यह पागलपन बिलकुल शुभ है, ठीक है । फिर बेझिझक इसमें प्रवेश कर जाना । का कारण तो तभी है जब तुम किसी को नुकसान पहुंचाने लगो। तुम्हारे नाच से किसी को कोई बाधा नहीं है, लेकिन कोई सो रहा है और तुम उसकी छाती पर जा कर ढोल बजा कर नाचने लगो। तुम नाचो, इससे कुछ अड़चन नहीं है। तुम गुनगुनाओ राम का नाम, यह ठीक है। लेकिन माइक लगा कर आधी रात में और तुम अखंड कीर्तन शुरू कर दो, तो तुम पागल हो । हालांकि कोई तुमको पागल नहीं कह सकता, क्योंकि तुम राम धुन कर रहे हो। ऐसे कई पागल कर रहे हैं। वे कहते हैं, अखंड कीर्तन कर रहे हैं, चौबीस घंटे की कथा की है । सोओ न सोओ, तुम्हारी मर्जी! अगर तुम बाधा डालो तो अधार्मिक हो । इतना ही खयाल रखना तुम्हारा आनंद हिंसात्मक न हो। बस यह पर्याप्त है। तुम्हारा आनंद तुम्हारा निजी हो। इसके कारण किसी के जीवन में कोई बाधा न पड़े, कोई पत्थर न पड़े। तुम्हारा फूल खिले, लेकिन तुम्हारे फूल के खिलने के कारण किसी को कांटे न चुभें। इतना ही भर खयाल रहे तो तुम ठीक दिशा में जा रहे हो । जहां तुम्हें लगे कि अब दूसरों को बाधा होने लगी, वहां थोड़े सावधान होना ! वहां परमहंस की तरफ न जा कर तुमने पागलपन का रास्ता पकड़ लिया। ‘ओमप्रकाश’ से किसी को कोई दुख नहीं है। बेझिझक, बेधड़क जा सकते हो। कल मैं एक गीत पढ़ रहा था : जो कुछ सुंदर था, प्रेय, काम्य जो अच्छा, मंजा, नया था, सत्य - सार मैं बीन-बीन कर लाया नैवेद्य चढ़ाया पर यह क्या हुआ ? सब पड़ा पड़ा कुम्हलाया सूख गया, मुर्झाया समाधि का सूत्र : विश्राम 35
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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