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रश्मि बन तुम आए चुपचाप सिखाने अपने मधुमय गान अचानक दी वे पलकें खोल हृदय में बेध व्यथा का बाण हुए फिर पल में अंतरधान। नींद में सपना बन अज्ञात गुदगुदा जाते हो जब प्राण ज्ञात होता हंसने का मर्म, तभी तो पाती हूं यह जान : प्रथम छू कर किरणों की छांह मुस्कुराती कलियां क्यों प्रात? समीरण का छू कर चल छोर
लौटते क्यों हंस-हंस कर पात? एक बार तुम्हें प्रभु का संस्पर्श हो जाए, तो तुम भी समझ पाओगे किः
नींद में सपना बन अज्ञात गुदगुदा जाते हो जब प्राण ज्ञात होता हंसने का मर्म, तभी तो पाती हूं यह जानः प्रथम छू कर किरणों की छांह
मुस्कुराती कलियां क्यों प्रात? सुबह, सूरज की किरण को छू कर फूल क्यों मुस्कुराने लगते हैं? क्यों अचानक सारी पृथ्वी एक नए आलोक, एक नई ऊर्जा, एक नए प्रवाह से भर जाती है जीवन के? क्यों सब तरफ जागरण छा जाता है?
प्रथम छू कर किरणों की छांह मुस्कुराती कलियां क्यों प्रात? समीरण का छू कर चल छोर
लौटते क्यों हंस-हंस कर पात? और जब पत्तों से खेलने लगता समीरण, तो पत्ते क्यों मुस्कुराने लगते हैं, क्यों प्रसन्न होने लगते
जंब प्रभु की किरण तुम्हें छुएगी, तभी तुम जान पाओगे यह प्रकृति में जो उत्सव चल रहा है, क्या है; यह चारों तरफ जो महोत्सव तुम्हें घेरे है, यह क्या है? यह जो अहर्निश ओंकार का नाद हो रहा है चारों तरफ, तुम्हें तभी सुनाई पड़ेगा।
लेकिन उसके पहले श्रम तो करना है, लाख जतन तो करने हैं। यत्न तुम करो, प्रभु प्रतीक्षा करता है। जैसे ही तुम्हारे यत्न का पात्र पूरा हो जाता, प्रसाद बरसता है।
प्रभु प्रसाद-परिपूर्ण प्रयत्न से
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