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________________ तरह, ताकि मैं कुछ लिख सकू तुम पर। लिखे-लिखाए मत आओ, गुदे-गुदाए मत आओ; अन्यथा मैं क्या लिखूगा? तुम मुझे लिखने का थोड़ा मौका दो। खाली आओ ताकि मैं तुममें उंडेलूं अपने को और भर दूं तुम्हें। शास्त्रों से भरे मत आओ। शास्त्र तो मैं तुम्हारे भीतर पैदा करने को तैयार हूं। तुम्हें शास्त्र ले कर आने की जरूरत नहीं। तुम सिद्धांतों और तर्कों के जाल में मत पड़ो। ___ तुम आओ चुप, तुम आओ हृदयपूर्वक, भाव से भरे। मुझे एक मौका दो, ताकि तुम्हें निखारूं, तुम्हारी प्रतिमा गईं। दूसरा प्रश्नः मैं तो लाख यतन कर हारयो, अरे हां, रामरतन धन पायो। |छा है 'अजित सरस्वती' ने। ऐसा ही है। आदमी का यत्न कुछ काम नहीं आता। अंततः तो प्रभु-कृपा ही काम आती है। मगर प्रभु-कृपा उन्हें मिलती है जो यत्न करते हैं। अब जरा झंझट हुई, विरोधाभास हुआ। समझने की कोशिश करना। प्रभु तो उन्हें ही मिलता है जो प्रभु-कृपा को उपलब्ध होते हैं। लेकिन प्रभु-कृपा को वे ही उपलब्ध होते हैं, जो अथक प्रयत्न करते हैं। प्रयत्न से प्रभु नहीं मिलता, लेकिन प्रभु-कृपा प्रयत्न से मिलती है। फिर प्रभु-कृपा से प्रभु मिलता है। ___तो दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक तो हैं वे, जो कहते हैं हम अपने प्रयत्न से ही पा कर रहेंगे, हम तुझसे प्रसाद नहीं मांगते—ये बड़े अहंकारी लोग हैं। ये कहते हैं, हम तो खुद ही पा कर रहेंगे, हम मांगेंगे नहीं। हम मांगने वालों में नहीं। हम भिखमंगे नहीं हैं। हम तो छीन-झपट कर लेंगे। ये तो ईश्वर पर आक्रमण करने वाले लोग हैं। ये तो बैंड-बाजा ले कर और मशालें ले कर और हमला करते हैं। ये तो छुरे-भाले ले कर ईश्वर पर जाते हैं। ये तो आक्रमक हैं। इनको प्रभु कभी नहीं मिलता। और जब इनको नहीं मिलता, तो ये कहते हैं : प्रभु है नहीं; होता तो मिलना चाहिए था। यही तो विज्ञान की चेष्टा है। विज्ञान आक्रमक है, बलात्कारी है; जबर्दस्ती जीवन के रहस्य को खोल देना चाहता है। जैसे कोई किसी फूल की कली को जबर्दस्ती खोल दे; सब खो जाता है उस जबर्दस्ती खोलने में; फूल का सौंदर्य प्रभु प्रसाद-परिपूर्ण प्रयत्न से 315
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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