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· इसे तुम समझना। कृष्ण कह रहे हैं कि अगर तू परमात्मा को समर्पित हो कर हिंसा भी करता है, तो भी पाप नहीं है। और अगर-मैं तुमसे कह रहा हूं-लोभ की आकांक्षा से तुम दान भी करते हो तो पाप है। तुम्हारी प्रार्थना में अगर मांग है, तो पाप हो गया। तुम्हारी प्रार्थना अगर सिर्फ अहोभाव की
अभिव्यक्ति है तो पुण्य हो गया। - पूछा है, 'गुरु-दर्शन को कैसे आऊं? जब शिष्य गुरु के पास जाए तो कैसे जाए ? गुरु के पास शिष्य किस तरह रहे, क्या-क्या करे, और क्या-क्या न करे?' ___पहली बात, आंतरिक शिष्यता को जन्म दे। जो मैं कह रहा हूं, उसे सुन कर सीख लेना, उसका ज्ञान बना लेना, उससे स्मृति को परिपुष्ट कर लेना-शिष्यता नहीं है। विद्यार्थी हो तुम शिष्य नहीं। तो विद्यार्थी और शिष्य का भेद समझ लो। विद्यार्थी, विद्या का अर्जन करता; जो कहा जाता है, उसे संयोजित करके रखता, उसकी मंजूषा बनाता, उसको कंठस्थ करता, जानकारी इकट्ठी करता; उसकी बुद्धि ज्यादा संपन्न हो जाती; उसकी स्मृति ज्यादा भरी-पूरी हो जाती; वह हर प्रश्न के उत्तर भीतर इकट्ठे करता जाता। वह संग्राहक है। जैसे कोई धन इकट्ठा करता है, ऐसे वह ज्ञान इकट्ठा करता है। यह विद्यार्थी है।
शिष्य विद्यार्थी नहीं है। शिष्य आत्मार्थी है। शिष्य सत्यार्थी है। उसको इसकी कोई आकांक्षा नहीं है कि स्मृति बहुत पुष्ट हो जाये, जानकारी का बहुत अंबार लग जाये। नहीं, इससे उसे प्रयोजन नहीं। वह चाहता है, उसकी आत्मा प्रगट हो जाये। जानकारी रहे न रहे; कोरा हो जाऊं, फिक्र नहीं मेरी आत्मा विकसित हो जाये। ____अंग्रेजी में दो शब्द हैं : बीइंग और नॉलेज; आत्मा और ज्ञान। विद्यार्थी की आकांक्षा नॉलेज, ज्ञान की है। शिष्य की आकांक्षा बीइंग की, आत्मा की है-मैं और गहन हो जाऊं, और विराट हो जाऊं, और विस्तीर्ण हो जाऊं; मेरी सीमायें टूटें; मैं आकाश में उडूं, विराट और विभु में मेरा प्रवेश हो जाये। जान लूं परमात्मा के संबंध में तो विद्यार्थी-कैसे परमात्मा हो जाऊं; कैसे उसमें डूब जाऊं; कैसे उसमें पग जाऊं और खो जाऊं; कैसे यह मेरी छोटी-सी कल-कल करती सरिता उसके सागर में तिरोहित
हो जाए? - तो विद्यार्थी तो कुछ लेने आता है, शिष्य कुछ खोने आता है। विद्यार्थी तो कूड़ा-कर्कट इकट्ठा करके, पोटली बांध कर चल देता है; शिष्य जाते वक्त पाएगा कि बचा ही नहीं। पोटली बांधनी तो दूर; जो आया था, वह भी गया। खाली हो कर लौटेगा शिष्य, विद्यार्थी भर कर लौटेगा। विद्यार्थी दुनिया के बाजार में बेचने योग्य कुछ ले जायेगा, कमायेगा। शिष्य बिलकुल शून्य हो कर लौटेगा। शून्यता की तैयारी शिष्यतत्व है। बड़ी कठिन है। रहीम का वचन है:
अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम।। अब रहीम मुश्किल पड़ी-अब बड़ी झंझट में पड़े रहीम ! गाढ़े दोऊ काम-अब तो दोनों काम मुश्किल हो गये। सांचे तो जग नहीं-अगर सत्य की खोज करो तो बाजार खोता है। अगर सत्य की खोज करो, तो संसार खोता है। सांचे तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम-और अगर झूठ से चलो, तो
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1