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की तरफ, पूछा, 'आपका नाम ?'
उन्होंने कहा, मेरा नाम पंडित जवाहरलाल नेहरू है ।
उसने कहा, घबड़ाओ मत अगर तीन साल रह गये यहां, तुम भी ठीक हो जाओगे । यही बीमारी मुझे भी थी। मगर इन डाक्टरों की कृपा, ठीक कर दिया।
वह आदमी, पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने को समझता था ।
तुम हंसते हो, लेकिन तुमने जो अपने को समझा है, वह इससे बहुत भिन्न नहीं है। वह जरा हिम्मतवर रहा होगा तो उसने अपने को पंडित जवाहरलाल नेहरू समझ लिया। तुम उतने हिम्मतवर नहीं हो, या किसी से कहते नहीं; मन में तो समझते ही हो । मगर हर आदमी कुछ अपने को समझ रहा है, कल्पना को पोषित कर रहा है। यह कल्पना का जाल गिर जाये तो धर्म का आविर्भाव होता है।
‘मेरा बंध या मोक्ष नहीं है। आश्रय-रहित हो कर, भ्रांति शांत हो गई है। आश्चर्य है कि मुझमें स्थित हुआ जगत, वास्तव में मुझमें स्थित नहीं है । '
न मे बंधोऽस्ति मोक्षो वा भ्रांतिः शांता निराश्रया ।
अहो मयि स्थितं विश्वं वस्तुतो न मयि स्थितम्।
मे बंधः वा मोक्षः न अस्ति
- मेरा बंध या मोक्ष नहीं है ।
सुनो! कैसी अदभुत बात जनक कह रहे हैं : 'न मेरा बंधन है, न मेरा मोक्ष है ! '
तुमने यह तो सुना कि बंधन है संसार । छोड़ो बंधन ! बंधन से मोक्ष की खोज करो। लेकिन सुना तुमने, जनक क्या कह रहे हैं? वे कह रहे हैं, न मेरा बंधन है, न मोक्ष !
ऐसी चित्तदशा का नाम ही मोक्ष है, जहां तुम्हें पता चलता है: न बंधन है न मोक्ष। बंधन भी कल्पित थे, तो मोक्ष भी कल्पित है।
कथा है जीसस के जीवन में कि वे एक गांव में आये, और उन्होंने एक वृक्ष के नीचे कुछ लोगों को बड़े उदास देखा, बड़े परेशान देखा, बड़े दीन, दुर्बल! उन्होंने पूछा, 'तुम्हें क्या हुआ ? तुम पर कौन-सी विपदा आ गई ?' उन लोगों ने कहा, 'विपदा हम पर बड़ी आई। हम लोग बहुत घबड़ा गये हैं, हमने बड़े पाप किये हैं । और हम नर्क से डर रहे हैं, हम थर-थर कांप रहे हैं।'
अब मुसलमानों का नर्क खतरनाक तो होने ही वाला है। अगर नर्क जाओ, तो हिंदुओं का चुनना, वहां थोड़ी अस्तव्यस्तता रहेगी, मुसलमानों का मत चुनना । अगर वहां कोई चुनाव हो तो भारतीयों का चुन लेना, जर्मन या इस तरह के लोगों का नर्क मत चुन लेना; क्योंकि वहां बड़ी चुस्ती है, वहां सब नियम की पाबंदी है। वहां रिश्वत भी नहीं चलेगी, कि जरा रिश्वत दे दी, और आग से जरा बच गये, कि जरा ठंडी आग में डलवा लिया अपने को । कुछ न चलेगा वहां । अब मुसलमानों का नर्क ! वे तो ठीक से सतायेंगे; छोड़ेंगे नहीं। वे तो बड़े धार्मिक रूप से सतायेंगे।
उन्होंने कहा, हम बड़े घबड़ा गये हैं। पाप बहुत किये हैं, हम घबड़ा रहे हैं, हम कंप रहे हैं। और मरने का दिन करीब आ रहा है, दोजख में पड़ेंगे, नर्क में सड़ेंगे। तो हमें चैन नहीं है ।
जीसस और आगे बढ़े, एक वृक्ष के नीचे उन्होंने और लोगों को बैठे देखा । वे बड़े आशा से भरे बैठे थे। लेकिन आशा में भी भय था । और उन्होंने बड़ी तपश्चर्या की थी, उपवास किये थे, धूप में
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अष्टावक्र: महागीता भाग-1