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________________ मुझको निर्णायक चुन लो। आया ताव पांचवें को, शुरू किया ः रेंको-रेको। खूब चली फिर दुलत्ती, कुचल गई पत्ती-पत्ती। मालिक आया तभी सधे, बदले बिलकुल नहीं गधे। मालिक को देख कर सध भी गये, शांत भी खड़े हो गये-बदले बिलकुल नहीं गधे! लेकिन कहीं मालिक को देख कर सध कर खड़े हो जाने से, सधे हो जाने से कहीं गधे बदले? तो कुछ गधे हैं जो बाजार में तुम्हें मिलेंगे, कुछ गधे तुम्हें आश्रमों में मिलेंगे—सधे-बधे गधे, मगर बदले बिलकुल नहीं गधे। कोई धन के पीछे पागल है, कोई धन छोड़ने के पीछे पागल है लेकिन धन का प्रभाव दोनों पर है। धन से छूट होती नहीं दिखती। धन छूट जाता है, तो भी धन से छट होती नहीं दिखती। कोई स्त्रियों के पीछे दीवाना है, कोई स्त्रियों से घबड़ा कर भाग गया है। फर्क कहां? दिशा बदल गई, मूढ़ता नहीं बदली। बदले बिलकुल नहीं गधे! घबड़ाहट है कि कहीं स्त्री न छू जाये, कि कहीं स्त्री दिखाई न पड़ जाये! यह घबड़ाहट कैसी? अगर तुम्हें दिखाई पड़ गया कि सब सपना है, तो घबड़ाहट कैसी? सुबह जागकर अगर कोई कहे कि रात देखा कि सब सपना है-इस कमरे में सांप ही सांप थे, कि सिंह दहाड़ते थे, सब सपना है। लेकिन सुबह हम उससे कहें कि चलो कमरे के भीतर, वह कहे कि मैं नहीं जाता; सब सपना है, बाकी मैं जाता नहीं. क्यों जायें? अगर तम्हें दिखाई पड़ गया कि सपना है, तो अब क्या घबडाहट? अब तो कमरे के भीतर आ जाओ। नहीं, वह कहता है, सब सपना है, सब समझ में आ गया, मगर जायें क्यों कमरे के भीतर? कमरे के भीतर हम नहीं जाएंगे, हमने कमरे का त्याग कर दिया है। __जनक जैसा ज्ञानी बहुत मुश्किल से मिलेगा। क्योंकि जनक ज्ञान को उपलब्ध हुए, और महल छोड़ा नहीं। यह परम ज्ञानी की दशा है। क्योंकि जब जान ही लिया, तो छोड़ने को कुछ न बचा। जनक ज्ञान को उपलब्ध हो गये, रत्ती भर भी बदलाहट न की। क्योंकि बदलाहट कहां करें? सपना तो गया। अब जो जैसा है, है। अगर ज्ञान के बाद त्याग की चेष्टा चले, तो समझना ज्ञान अभी घटा नहीं। मूढ़ों के सिवाय त्याग कभी कोई करता ही नहीं। ज्ञानी क्यों त्याग करेगा? ज्ञानी का तो बोध-मात्र पर्याप्त है। उसे तो दिखाई पड़ गया कि यह सब मायाजाल है, बस ठीक है! वह उससे आंदोलित नहीं होता न पक्ष में, न विपक्ष में। उस पर इसकी छाया नहीं पड़ती-न तो आकर्षण की, न विकर्षण की। ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति न तो रागी होता न विरागी। ज्ञान को उपलब्ध व्यक्ति न भोगी हो सकता, न रागी, न त्यागी। क्योंकि भोगी और योगी होने के लिये, भोगी और त्यागी होने के लिये, सपना चाहिये वही। दोनों का सपना एक है। दोनों की मान्यता एक है। एक कहता है धन में सब है, और एक कहता है धन मिट्टी है। 276 दिमा अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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