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________________ के बाहर है। संबोधि घटी ही हुई है। तुम्हें जिस क्षण तैयारी आ जाये, तुम्हें जिस क्षण हिम्मत आ जाये, जिस क्षण तुम अपनी दीनता छोड़ने को तैयार हो जाओ, और जिस क्षण तुम अपना अहंकार छोड़ने को तैयार हो जाओ-उसी क्षण घट जायेगी। न तुम्हारे तप पर निर्भर है, न तुम्हारे जप पर निर्भर है। जप-तप में मत खोये रहना। मैं एक घर में मेहमान हुआ एक बार। तो वह पूरा घर पुस्तकों से भरा था। मैंने पूछा कि बड़ा पुस्तकालय है? घर के मालिक ने कहा, बड़ा पुस्तकालय नहीं है; बस इन सब किताबों में राम-राम लिखा है। बस मैं जनम भर से यही कर रहा हूं पुस्तकें खरीदता हूं, राम-राम-राम-राम दिन भर लिखता रहता हूं। इतने करोड़ बार लिख चुका हूं! इसका कितना पुण्य होगा, आप तो कुछ कहें। इसका क्या पुण्य होगा? इसमें पाप भला हो! इतनी कापियां बच्चों के काम आ जातीं स्कूल में, तुमने खराब कर दीं-तुम पूछ रहे हो पुण्य? तुम्हारा दिमाग खराब है? यह राम राम लिखने से किताबों में...! उनको बड़ा धक्का लगा, क्योंकि संत और भी उनके यहां आते रहते थे, वे कहते थेः बड़े पुण्यशाली हो! इतनी बार राम लिख लिया, इतनी बार माला जप ली, इतनी बार राम का स्मरण कर लिया-अरे एक बार करने से आदमी स्वर्ग पहुंच जाता है, तुमने इतना कर लिया! मुझसे नाराज हुए, तो फिर मुझे कभी दोबारा नहीं बुलाया—यह आदमी किस काम का, जो कहता है पाप हो.गया? उनको बड़ा धक्का लगा। उन्होंने कहा ः आप हमारे भाव को बड़ी चोट पहुंचाते हैं। ____ तुम्हारे भाव को चोट नहीं पहुंचाता; सिर्फ इतना ही कह रहा हूं कि यह क्या पागलपन है? राम-राम लिखने से क्या मतलब? जो लिख रहा है, उसको पहचानो, वह राम है: उसको कहां के काम में लगाए हुए हो, राम-राम लिखवा रहे हो! बोलो, राम को फंसा दो, बिठा दो कि लिखो, छोड़ो धनष-बाण. पकडो कलम. लिखो राम-राम. यह कहां फिर रहे हो सीता की तलाश में और यह क्या कर रहे हो तो पाप होगा कि पण्य? और रामचंद्र जी अगर भले आदमी मान लें कि चलो ठीक है. अब यह आदमी पीछे पड़ा है, न लिखें तो बुरा न मान जाये, तो बैठ राम-राम लिख रहे हैं तो उनका जीवन तुमने खराब किया। __ तुम भी जब लिख रहे हो तो तुम राम से ही लिखवा रहे हो। यह कौन है जो लिख रहा है? इसे पहचानो। यह कौन है जो रटन लगाये हुए है राम-राम की? यह कहां उठ रही है रट? उसी गहराई में उतरो। अष्टावक्र कहते हैं, वहां तुम राम को पाओगे। 250 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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