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________________ -मैं उससे अलग नहीं, प्रकाश से अलग नहीं। यह जो प्रकाश का अंतःस्रोत है, यह तभी उपलब्ध होता है, जब 'मैं' चला जाता है। लेकिन कहो, तो कैसे कहो? जब कहना होता है तो 'मैं' को फिर ले आना होता है। __ 'जब संसार प्रकाशित होता है, तब वह मेरे प्रकाश से ही प्रकाशित होता है।' निश्चित ही जनक यहां जनक नाम के व्यक्ति के संबंध में नहीं बोल रहे हैं। व्यक्ति तो खो गया, व्यक्ति की लहर तो गई—यह तो सागर बचा! यह सागर हम सबका है। यह घोषणा जनक की, उनके ही संबंध में नहीं, तुम्हारे संबंध में भी है; जो कभी हुए, उनके संबंध में; जो कभी होंगे, उनके संबंध में! यह समस्त अस्तित्व के संबंध में घोषणा है। ___ तुम जरा मिटना सीखो, तो इसका स्वाद लगने लगे। और स्वाद लगेगा, तो ऐसी घोषणाएं तुमसे भी उठेगी। इन्हें रोकना मुश्किल है। ____मंसूर को पता था कि अगर उसने इस तरह की बात कही : 'अनलहक', 'अहं ब्रह्मास्मि', कि 'मैं ही परमात्मा हूं,' तो सूली लगेगी; मुसलमानों की भीड़ उसे बर्दाश्त न कर सकेगी; अंधों की भीड़ उसे देख न पायेगी। फिर भी उसने घोषणा की। उसके मित्रों ने उसे कहा भी ऐसी घोषणा न करो, ऐसी घोषणा खतरनाक होगी। मंसर भी जानता है कि ऐसी घोषणा खतरनाक हो सकती है. लेकिन यह घोषणा रुक न सकी। जब फूल खिलता है तो सुगंध बिखरेगी ही। जब दीया जलेगा तो प्रकाश फैलेगा ही। फिर जो हो, हो। . रहीम का एक वचन है : खैर, खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रीत, मधुपान, रहिमन दाबे न दबे, जानत सकल जहान। कुछ बातें हैं, जो दबाये नहीं दबतीं। साधारण मदिरा पी लो, तो कैसे दबाओगे? अक्सर ऐसा होता है कि शराब पीने वाला जितना दबाने की कोशिश करता है उतना ही प्रगट होता है। खयाल किया तुमने? शराबी बड़ी चेष्टा करता है कि किसी को पता न चले! सम्हल कर बोलता है। उसी में पता चलता है। सम्हल कर चलता है, उसी में डांवाडोल हो जाता है। होशियारी दिखाना चाहता है कि किसी को पता न चले। ___ मुल्ला नसरुद्दीन एक रात पी कर घर लौटा। तो बहुत विचार करके लौटा कि आज पत्नी को पता न चलने देगा। क्या करना चाहिए? सोचा कि चल कर कुरान पढूं। कभी सुना कि शराबी और कुरान पढ़ता हो। जब करान पढंगा तो साफ हो जायेगा कि शराब पी कर नहीं आया है। कभी शराबियों ने कुरान पढ़े! घर पहुंचा, प्रकाश जला कर बैठ गया, कुरान पढ़ने लगा। आखिर पत्नी आई, और उसने उसे झकझोरा और कहा कि बंद करो यह बकवास! यह सूटकेस खोले किसलिए बैठे हो? कुरान शराबी खोजे कैसे? सूटकेस मिल गया उनको, उसे खोल कर पढ़ रहे थे! ऐसे छिपाना संभव नहीं है। और जब साधारण मदिरा नहीं छिपती तो प्रभु-मदिरा कैसे छिपेगी? आंखों से मस्ती झलकने लगती है। आंखें मदहोश हो जाती हैं। वचनों में किसी और लोक का रंग छा जाता है। वचन सतरंगे हो जाते हैं। वचनों में इंद्रधनुष फैल जाते हैं। साधारण गद्य भी बोलो तो पद्य मेरा मुझको नमस्कार 227
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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