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________________ और ध्यान' में है। समझे मेरी बात? तुम जब नहीं ध्यान करोगे-सुन लिया अष्टावक्र को-अष्टावक्र ने कहा ध्यान इत्यादि सब बंधन है-और बिलकुल ठीक कहा, सौ प्रतिशत ठीक कहा-तो तुमने ध्यान छोड़ दिया तो तुम क्या करोगे? साक्षी हो जाओगे उस समय? तुम वही कूड़ा-कर्कट विचार दोहराओगे। तो यह तो बड़े मजे की बात हुई। यह तो अष्टावक्र के कारण तुम और भी संसार में गिरे। यह तो सीढ़ी, जिससे चढ़ना था, तुमने नर्क में उतरने के लिए लगा ली। सीढ़ी वही है। ___मैं तुमसे कहता हूं, ध्यान करो। क्योंकि अभी तुम्हारे सामने विकल्प ध्यान और विचार, इसका है; अभी साक्षी का तो तुम्हारे सामने विकल्प नहीं है। हां, जब ध्यान कर-करके विचार समाप्त हो जायेगा, तब एक नया विकल्प आयेगा, कि अब चुनना है : साक्षी या ध्यान? तब साक्षी चुनना, और ध्यान को भी छोड़ देना। अभी अगर तुमने तय किया कि संन्यास नहीं लेना है, तो तम संसारी रहोगे। अभी विकल्प संन्यास और संसार में है। अभी मैं कहता हूं : लो संन्यास! फिर एक दिन ऐसी घड़ी आयेगी कि विकल्प संसार और संन्यास का नहीं रह जाएगा। संसार तो गया, संन्यास रह गया। तब परम संन्यास और संन्यास का विकल्प होगा। तब मैं तुमसे कहूंगा : जाने दो संन्यास! अब डूबो परम संन्यास में। ___ हां, अगर तुम क्षण भर में जनक जैसे जा सकते हो, तो मैं बाधा देने वाला नहीं! तुम सुखी हो जाओ! सुखी भव! न हो पाओ, तो इसमें कोई और निर्णय करेगा नहीं, तुम्ही निर्णय करना किं अगर सुखी नहीं हो पा रहे, तो फिर कुछ करना जरूरी है। सत्य भी तुम असत्य कर ले सकते हो, और फूल भी तुम्हारे लिए कांटे बन सकते हैं—तुम पर निर्भर है। उजियारे में नैन मंद कर भाग नहीं मेरे भोले मन! डगरें सब अनजानी हैं, पथ में मिलते शूल-शिला भीनी-भीनी गंध देख कर, सुमनों का विश्वास न कर! तुम जरा खयाल करना, जाग कर कदम उठाना! क्योंकि तुम जो कदम उठाओगे, वह कहीं भीनी-भीनी गंध को देख कर ही मत उठा लेना। पथ में मिलते शूल-शिला भीनी-भीनी गंध देख कर सुमनों का विश्वास न कर। वह जो तुम्हें भीनी गंध मिलती है, खयाल कर लेना, वह कहीं तुम्हारी आरोपित ही न हो! वह कहीं तुम्हारा लोभ ही न हो! वह तुम्हारा कहीं भय ही न हो! वह कहीं तुम्हारी कमजोरी ही न हो, जो तुम आरोपित कर लेते हो। और उस भीनी गंध में तुम भटक मत जाना। बड़ा सुगम है कुछ न करना, सुन कर ऐसा लगता है। लेकिन जब करने चलोगे 'कुछ न करना', | 212 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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