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________________ पता नहीं। क्या-क्या तुमने किया है अनेक-अनेक जन्मों में, उसका तुम्हें पता नहीं। क्या - क्या तुमने खोज लिया था, क्या-क्या अधूरा रह गया है, उसका तुम्हें कुछ पता नहीं। हर बार मौत आती है, और तुमने जो किया था, सब चौपट कर जाती है। तुममें से बहुत ऐसे हैं, जो बहुत बार संन्यस्त हो चुके हैं - हर बार मौत आ कर चौपट कर गई। और तुम्हारी इतनी स्मृति नहीं है कि तुम याद कर लो। I ऐसा ही समझो कि तुम एक काम कर रहे थे, तुम एक चित्र बना रहे थे, अधूरा बना पाये थे कि आई। बस आ गई कि तुम भूल गए। फिर तुम जन्मे । फिर अगर तुम्हें वह अधूरे चित्र की सूचना भी मिल जाये, वह अधूरा चित्र भी तुम्हारे सामने ला कर रख दिया जाये, तो भी तुम्हें याद नहीं आता; क्योंकि तुमने तो सोचा ही नहीं इस जन्म में, कि मैं और चित्रकार ! और अगर मैं तुमसे कहूं कि इसे पूरा कर लो, यह अधूरा पड़ा है; तुमने बड़ी आकांक्षा से बनाया था; तुमने बड़ी गहन अभीप्सा से रचा था— अब इसे पूरा कर लो, मौत बीच में आ गई थी, अधूरा छूट गया था। तुम कहोगे, 'मुझे तो कुछ पता नहीं, आप पकड़ा देते हैं तूलिका तो ठीक है; लेकिन मुझे तूलिका पकड़ना भी नहीं है | आप रख देते हैं ये रंग, तो ठीक है रंग दूंगा; लेकिन मुझे कुछ पता नहीं कि चित्र कैसे बनाये जाते हैं।' फिर भी मैं तुमसे कहता हूं कि शुरू करो, शुरू करने से ही याद आ जायेगी । चलो, पकड़ो तूलिका हाथ में, याद आ जाये शायद ! ऐसा हुआ, दूसरे महायुद्ध में, एक सैनिक गिरा चोट खा कर, उसकी स्मृति खो गई गिरते ही । सिर पर चोट लगी, स्मृति के तंतु अस्तव्यस्त हो गये, वह भूल गया । वह भूल गया - अपना नाम भी! वह भूल गया मैं कौन हूं! और युद्ध के मैदान से जब वह लाया गया तो वह बेहोश था; कहीं उसका तगमा भी गिर गया, उसका नंबर भी गिर गया। बड़ी कठिनाई खड़ी हो गई। जब वह होश में आया तो न उसे अपना नंबर पता है, न अपना नाम पता है, न अपना ओहदा पता है। मनोवैज्ञानिकों ने बड़ी चेष्टा की खोज - बीन करने की; सब तरह के उपाय किये, कुछ पता न चले। वह आदमी बिलकुल कोरा हो गया; जैसे अचानक उसकी स्मृतियों से सारा संबंध टूट गया। फिर किसी ने सुझाव दिया कि अब एक ही उपाय है कि इसे इंग्लैंड में घुमाया जाये । वह इंग्लैंड की सेना का आदमी था। इसे इंग्लैंड में घुमाया जाए, शायद अपने गांव के पास पहुंच कर इसे याद आ जाये । तो उसे इंग्लैंड में घुमाया गया ट्रेन पर बिठा कर दो आदमी उसे ले कर चले। हर स्टेशन पर गाड़ी रुकती, वह उसे नीचे उतारते। वह देखता खड़े हो कर ! वह थक गए। इंग्लैंड छोटा मुल्क है, इसलिए बहुत अड़चन न थी, सब जगह घुमा दिया। और अंततः एक छोटे-से स्टेशन पर, जहां गाड़ी रुकती भी नहीं थी, लेकिन किसी कारणवश रुक गई, वह आदमी नीचे उतरा, उसने स्टेशन पर लगी तख्ती देखी, उसने कहा, 'अरे, यह रहा मेरा गांव!' वह दौड़ने लगा। वह पीछे भूल ही गया कि मेरे साथ दो आदमी हैं। वे दो आदमी उसके पीछे भागने लगे। वह स्टेशन से निकल कर गांव में दौड़ा। सब याद आ गया ! गली-कूचे याद आ गये। उसने किसी से पूछा भी नहीं । गली-कूचों को पार करके वह अपने घर के सामने पहुंच गया। उसने कहा, 'अरे! यह रहा मेरा घर, यह रहा मेरा नाम ! यह मेरी तख्ती भी लगी है !' उसे सब याद आ गई। बस एक चोट पड़ी कि फिर उसे सारी याद आ गई। विस्मृति खो गई, स्मृति का तंतु फिर जुड़ गया। तो कभी-कभी मैं, जैसे 'दयाल' को संन्यास दिया, इसी आशा में कि घुमाऊंगा गेरुए वस्त्रों में, 198 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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