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________________ ' उसने कहा, 'तुम्हारी मर्जी, लेकिन तुम जानो । ब्राह्मण होकर कुत्ते को कंधे पर लिये हो ! भई, मुझको तो कुत्ता दिखाई पड़ता है। हो सकता है मेरी गलती हो । ' के ब्राह्मण चला सोचता हुआ कि यह आदमी भी कैसा है! मगर उसने एक बार टटोल कर बकरी देखे । उसने कहा, बकरी ही है। दूसरे किनारे पर राह के दूसरा उन्हीं का सगा साथी खड़ा था। उसने कहा कि कुत्ता गजब का खरीदा ! अब ब्राह्मण इतनी हिम्मत से न कह सका कि कुत्ता नहीं है; हो न हो कुत्ता ही हो ! दो आदमी गलत नहीं हो सकते। फिर भी उसने कहा कि नहीं-नहीं, कुत्ता नहीं है। लेकिन अब कमजोर था । कह तो रहा था, लेकिन भीतर की नींव हिल गई थी। उसने कहा कि नहीं - नहीं, बकरी है। उसने कहा कि बकरी है ? इसको बकरी कहते हैं ? तो फिर परिभाषा बदलनी पड़ेगी ब्राह्मण देवता! अगर इसको बकरी कहते हैं तो फिर कुत्ता किसको कहेंगे? वैसे आपकी मर्जी । आप पंडित आदमी हैं, हो सकता है बदल दें। नाम की तो बात है। चाहे कुत्ता कहो, चाहे बकरी कहो - रहेगा तो कुत्ता ही । कहने से कुछ नहीं होता । वह आदमी तो चला गया, ब्राह्मण ने बकरी उतार कर नीचे रख कर देखी, बिलकुल बकरी है ! बिलकुल बकरी जैसी बकरी है। आंखें मींड़ीं। रास्ते के किनारे लगे नल से पानी से आंखें धोईं। क्योंकि अपना पड़ोस करीब आता जाता और लोग देख लें कि ब्राह्मण कुत्ता सिर पर लिये है तो पूजा और पांडित्य को धक्का लगेगा ! पूजा करवाते हैं, लोग न करवायेंगे; लोग पागल समझेंगे। मगर फिर देख-दाख कर उसने सब तरह से कि बकरी है; लेकिन इन दो आदमियों को क्या हुआ ! फिर रखकर चला, लेकिन अब जरा डरता हुआ चला कि फिर कोई और न देख ले। वह तीसरा उनका साथी खड़ा था। उसने कहा कि कुत्ता तो गजब का है। कहां से लाये ? हम भी बड़े दिन से कुत्ता चाहते हैं। उसने कहा, बाबा तू ही ले ले! अगर कुत्ता चाहते हो तुम्हीं ले लो। यह कुत्ता ही है। एक मित्र ने दे दिया है, इससे छुटकारा करो मेरा । वह भागा वहां से घर की तरफ कि किसी को पता न चल जाये कि कुत्ता इसने लिया है। आदमी ऐसे ही जी रहा है । तुमने जो मान रखा है वह तुम हो गये हो। और तुम्हारे चारों तरफ बहुत लफंगे हैं; जो तुम्हें बहुत-सी बातें मनवा रहे हैं। उनके अपने प्रयोजन हैं। पुरोहित समझाना चाहता है कि तुम पापी हो; क्योंकि तुम पापी नहीं हो तो पूजा कैसे चलेगी? उसका हित इसमें है कि बकरी कुत्ता मालूम पड़े। पंडित है, अगर तुम अज्ञानी नहीं हो तो उसके पांडित्य का क्या होगा? उसकी दुकान कैसे चलेगी? धर्मगुरु है, वह अगर तुम्हें समझा दे कि तुम अकर्ता हो, कर्म-शून्य हो, तुमने कभी पाप किया ही नहीं – तो उसकी जरूरत क्या है ? यह यह तो ऐसा हुआ कि डाक्टर के पास तुम जाओ। और वह समझा दे कि बीमार तुम हो ही नहीं, बीमार तुम कभी हुए ही नहीं, बीमार तुम हो ही नहीं सकते, स्वास्थ्य तुम्हारा स्वभाव हैडाक्टर आत्महत्या कर रहा है अपनी। इसकी दुकान का क्या होगा ? तुम डाक्टर के पास जाओ भले - चंगे, जब तुम्हें कोई बीमारी नहीं है तब जाओ, तब भी तुम पाओगे कि वह बीमारी खोज लेगा। तुम जा कर देखो! बिलकुल भले- चंगे हो, तुम्हें कोई बीमारी नहीं है । जाकर, जरा चले जाओ, डाक्टर 126 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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