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________________ लेकिन हमने अष्टावक्र को मार नहीं डाला, न हमने उपनिषद के ऋषियों को मार डाला, जिन्होंने कहा, अहं ब्रह्मास्मि! क्योंकि हमने एक बात समझी कि आदमी जैसी घोषणा करता है वैसा ही हो जाता है। तो फिर छोटी क्या घोषणा करनी! जब तुम्हारी घोषणा पर ही तुम्हारे जीवन का विस्तार निर्भर है तो परम विस्तार की घोषणा करो, विराट की घोषणा करो, विभु की, प्रभु की घोषणा करो। इससे छोटी पर क्यों राजी होना? इतनी कंजूसी क्या? घोषणा में ही कंजूसी कर जाते हो। फिर कंजूसी कर जाते हो तो वैसे ही हो जाते हो। क्षुद्र मानोगे तो क्षुद्र हो जाओगे; विराट मानोगे तो विराट हो जाओगे। तुम्हारी मान्यता तुम्हारा जीवन है। तुम्हारी मान्यता तुम्हारे जीवन की शैली है। ____'तू निरपेक्ष (अपेक्षा-रहित) है, निर्विकार है, स्वनिर्भर (चिदघन-रूप) है, शांति और मुक्ति का स्थान है, अगाध बद्धिरूप है, क्षोभ-शन्य है। अतः चैतन्यमात्र में निष्ठावाला हो।' ___एक निष्ठा पर्याप्त है। साधना नहीं-निष्ठा। साधना नहीं-श्रद्धा। इतनी निष्ठा पर्याप्त है कि मैं चैतन्यमात्र हूं। इस जगत में यह सबसे बड़ा जादू है। मनस्विद कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को बार-बार कहो कि तुम बुद्धिहीन हो, वह बुद्धिहीन हो जाता है। जितने लोग दुनिया में बुद्धिहीन दिखाई पड़ते हैं, ये सब बुद्धिहीन नहीं हैं। ये हैं तो परमात्मा। इनको बुद्धिहीन जतला दिया गया है, बतला दिया गया है। इतने लोगों ने इनको दोहरा दिया है और इन्होंने भी इतनी बार दोहरा लिया है कि बुद्ध हो गये हैं! जो बुद्ध हो सकते थे, वे बुद्ध होकर रह गये हैं। . - मनस्विद कहते हैं, किसी आदमी को तुम राह पर मिलो-वह भला-चंगा है-तुम देखते ही उससे कहो, 'अरे तुम्हें क्या हो गया? चेहरा पीला है! बुखार है! देखें हाथ! बीमार हो! तुम्हारे पैर कंपते से मालूम पड़ते हैं।' पहले तो वह इनकार करेगा-क्योंकि सोचा भी नहीं था क्षण भर पहले तक वह कहेगा, 'नहीं-नहीं.! मैं बिलकुल ठीक हूं। आप कैसी बातें कर रहे हैं?' 'ठीक है, आपकी मर्जी!' फिर थोड़ी देर बाद दूसरा आदमी उसको मिले और कहे, 'अरे! चेहरा पीला पड़ गया है, क्या मामला है ?' अब वह इतनी हिम्मत से न कह सकेगा कि मैं बिलकुल ठीक हूं। वह कहेगा, हां कुछ तबीयत खराब है। वह राजी होने लगा। हिम्मत उसकी खिसकने लगी। फिर तीसरा आदमी मिले और कहे कि अरे...! अब तो वह घर ही लौट जायेगा कि तबीयत मेरी ज्यादा खराब है। अब बाजार जाने से कुछ सार नहीं। तमने कहानी सनी कि एक ब्राह्मण एक बकरी को खरीद कर लाता था। तीन-चार लफंगों ने उसे देखा और उन्होंने सोचा कि इसकी बकरी तो छीनी जा सकती है। लेकिन ब्राह्मण मजबूत था और छीनना आसान मामला न था। तो उन्होंने सोचा कि थोड़ी कूटनीति करो। एक उसे मिला राह के किनारे और कहा कि गजब, यह कुत्ता कितने में खरीद लाये! उस आदमी ने, ब्राह्मण ने कहा, 'कुत्ता! तू अंधा तो नहीं है? पागल कहीं के! बकरी है! बाजार से खरीद कर ला रहा हूं। पचास रुपये खर्च किये हैं।' साधना नहीं-निष्ठा, श्रद्धा 125
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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