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________________ हम वही हो गये हैं। संसार हमारी मान्यता है। और मान्यता छोड़ दी तो हम तत्क्षण रूपांतरित हो सकते हैं। छोड़ने के लिए किसी यथार्थ को बदलना नहीं है; सिर्फ एक धारणा को छोड़ देना है। हम वस्तुतः अगर शरीर होते तो बदलाहट बड़ी मुश्किल थी। हम वस्तुतः शरीर नहीं हैं। हम वस्तुतः तो शरीर के भीतर छिपा जो चैतन्य है, वही हैं—वह जो साक्षी, द्रष्टा है। देहाभिमानपाशेन चिरं बद्धोऽसि पुत्रक। बोधोऽहं ज्ञानखंगेन तन्निष्कृत्य सुखी भव।। उठा बोध की तलवार! 'मैं बोध-रूप हूं'–उठा ऐसे भाव की तलवार और काट डाल इस धारणा को कि मैं देह हूं! फिर तू सुखी है। सारे दुख देह के हैं। जन्म है, बीमारी है, बुढ़ापा है, मृत्यु है—सभी देह के हैं। देह के साथ तादात्म्य है तो देह की सारी पीड़ाओं के साथ भी तादात्म्य है। जब देह जराजीर्ण होती है तो हम सोचते हैं, मैं जराजीर्ण हो गया। जब देह बीमार होती है तो हम सोचते हैं, मैं बीमार हो गया। जब देह मरण के निकट पहुंचती है तो हम घबड़ाते हैं कि मैं मरा। मान्यता सिर्फ मान्यता! ____ मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक रात सोया अपनी पत्नी के साथ। तब तक उसे कोई बेटा-बेटी न हुए थे। और पत्नी को बड़ी आतुरता थी कि कोई बच्चा हो जाये। सोने ही जा रहे थे कि पत्नी ने कहा कि सुनो तो, अगर हमारे घर बेटा हो जाये तो सुलायेंगे कहां? क्योंकि एक ही बिस्तर है। तो मुल्ला थोड़ा किनारे सरक गया। उसने कहा कि हम बीच में सुला लेंगे। और पत्नी ने कहा कि अगर दूसरा और हो जाए? तो मुल्ला थोड़ा और सरक गया, उसने कहा उसको भी यहीं सुला लेंगे। कंजूस आदमी! पत्नी ने कहा, अगर तीसरा हो जाये ? तो मुल्ला और सरका और कहने ही जा रहा था कि यहां सुला लेंगे कि धड़ाम से नीचे गिरा। उसकी टांग टूट गई। पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गये शोरगुल सुनकर। वह चिल्लाया, रोने लगा। पड़ोस के लोगों ने पूछा, क्या हुआ? उसने कहा, जो बेटा अभी हुआ ही नहीं उसने टांग तोड़ दी। और जब मिथ्या बेटा इतना नुकसान कर सकता है तो सच्चे बेटे का क्या कहना! क्षमा मांगता हूं, बेटा-वेटा चाहिए ही नहीं। इतना अनुभव बहत है। कभी-कभी, कभी-कभी क्या, अक्सर हम ऐसे ही जीते हैं—मान लेते हैं, फिर मान कर चलने लगते हैं। मान कर चलने लगते हैं तो जीवन में वास्तविक परिणाम होने लगते हैं, मान्यता चाहे झूठी हो। बेटे वहां थे नहीं, लेकिन टांग असली टूट गई। झूठ का भी परिणाम सच हो सकता है। अगर झूठ भी प्रगाढ़ता से मान लिया जाये तो उसके परिणाम यथार्थ में घटित होने लगते हैं। ___मनस्विद कहते हैं कि इस जगत में जितनी भिन्नताएं दिखाई पड़ती हैं, ये भिन्नताएं यथार्थ की कम हैं, मान्यता की ज्यादा हैं। ____एक मनोवैज्ञानिक हारवर्ड विश्वविद्यालय में प्रयोग कर रहा था। वह एक बड़ी बोतल ठीक से बंद की हुई, सब तरह से पैक की हुई लेकर कमरे में आया, अपनी क्लास में। कोई पचास विद्यार्थी हैं। उसने वह बोतल टेबल पर रखी और उसने विद्यार्थियों को कहा कि इस बोतल में अमोनिया गैस है। मैं एक प्रयोग करना चाहता हूं कि अमोनिया गैस का जैसे ही मैं ढक्कन खोलूंगा तो उस गैस की सुगंध कितना समय लेती है पहुंचने में लोगों तक। तो जिसके पास पहुंचने लगे सुगंध वह हाथ ऊपर ऊठा दे। जैसे ही सुगंध का उसे पता चले, हाथ ऊपर उठा दे। तो मैं जानना चाहता हूं कि कितने सेकेंड 116 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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