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भावार्थ : अनंतानुबंधी चतुष्क आदि छब्बीस प्रकृतियों को छोड़कर मिश्र गुणस्थान में सत्तर तथा तीर्थंकरनाम व मनुष्य आयुष्य जोड़ने पर सम्यक्त्व गुणस्थान में बहत्तर प्रकृतियों का बंध होता है ।
इस प्रकार नरक गति की यह सामान्य बंधविधि रत्नप्रभा आदि तीन नरकभूमियों के नारकों के चारों गुणस्थानकों में भी समझना चाहिए तथा पंकप्रभा आदि नरकों में तीर्थंकर नामकर्म के बिना शेष सामान्य बंधविधि पूर्ववत् समझनी चाहिए ||६||
अजिणमणुआउ ओहे, सत्तमिए नरदुगुच्चविणु । मिच्छे; इगनवइ सासाणे, तिरिआउ नपुंसचउ वज्जं ॥ ७ ॥ भावार्थ : सातवीं नरक में सामान्य से तीर्थंकरनाम कर्म और मनुष्य आयुष्य का बंध नहीं होता है । मनुष्य द्विक और उच्चगोत्र के बिना शेष प्रकृतियों का मिथ्यात्व गुणस्थानक में बंध होता है ||७||
॥७॥
सास्वादन गुणस्थानक में तिर्यंच आयु व नपुंसक चतुष्क के बिना 91 प्रकृतियों का बंध होता है तथा 91 प्रकृतियों में से अनंतानुबंधी चतुष्क आदि 24 प्रकृतियों को कम करने पर और मनुष्यद्विक एवं उच्चगोत्र इन तीन बंध स्वामित्व - तृतीय कर्मग्रंथ
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