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________________ श्री लघुसंग्रहणी प्रकरण नमिय जिणं सव्वनुं, जगपुज्जं जगगुरुं महावीरं । जंबूदीवपयत्थे, वुच्छं सुत्ता सपरहेउ ॥१॥ गाथार्थ : सर्वज्ञ, जगत् के पूज्य, जगत् के गुरु श्री महावीर जिनेश्वर को नमस्कार करके अपने और दूसरों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूत्रों से लेकर जम्बूद्वीप सम्बन्धी कतिपय पदार्थों का संक्षिप्त स्वरूप कहूँगा । खंडा जोयण वासा, पव्वय कूडा य तित्थ सेढीओ । विजय द्दह सलिलाओ, पिंडेसिं होइ संघयणी ॥२॥ गाथार्थ : खंडविभाग, योजन, वासक्षेत्र, पर्वत, कूट, तीर्थ, श्रेणी, षट्खण्ड देश, द्रह और नदी इन दस पदार्थों के संग्रह से लघुसंग्रहणी होती है । णउअसयं खंडणं, भरहपमाणेण भाइए लक्खे । अहवा णउअसयगुणं, भरहपमाणं हवइ लक्खं ॥३॥ गाथार्थ : भरतक्षेत्र के प्रमाण के साथ लाख योजन को भांगनेसे जंबूद्वीप १९० खंड का होता है अथवा भरतक्षेत्र के प्रमाण को १९० से गुणा करने पर जम्बूद्वीप एक लाख योजन का होता है । १६ दंडक - लघुसंग्रहणी
SR No.032106
Book TitleDandak Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages26
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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