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________________ पड - पडिहार - सि-मज्ज, हड - चित्त - कुलाल - भंडगारीणं, । जह एएसिं भावा, कम्माण वि जाण तह भावा ॥ ३८ ॥ पट्टी, द्वारपाल, तलवार, मदिरा (शराब), बेडी, चित्रकार, कुम्हार और भंडारी (कोषाध्यक्ष) जैसे स्वभाव वाले है वैसे ही आठ कर्मों के स्वभाव को भी जानो ॥ ३८ ॥ इह नाण- दंसणा-वरण, वेय- मोहाउ- नाम - गोआणि, I विग्धं च पण नव दु, अट्ठवीस चउ तिसय दु पणविहं ॥ ३९ ॥ यहाँ पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, एक सौ तीन, दो (और) पाँच प्रकार वाले (अनुक्रम से) ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र, और अन्तराय (कर्म) हैं ॥ ३९ ॥ नाणे अ दंसणावरणे, वेअणिए चेव अंतराए अ, । तीस कोडाकोडी, अयराणं ठिइ अ उक्कोसा ॥ ४० ॥ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय (कर्म) की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की है ॥ ४० ॥ सत्तरि कोडाकोडी, मोहणीए वीस नामगोएसु, । तित्तीसं अयराई, आउट्टि बंध उक्कोसा. ॥ ४१ ॥ मोहनीय कर्म का सत्तर (७०) कोडाकोड़ी, नाम और गोत्र कर्म का बीस कोड़ाकोड़ी तथा आयुष्य कर्म का उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तैंतीस सागरोपम का है ॥ ४१ ॥ नवतत्त्व २७
SR No.032105
Book TitleJeevvichar Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad Jain
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages34
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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