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________________ कृपालु नहीं हो?' सिद्धार्थ ने कहा कि, “बंदर की तरह चपलता करनेवाला तेरे दुश्चरित्र से हमेशा विपत्ति तो सिद्ध हो ही चुकी है।" प्रभु थोड़ी दूर जाकर उसकी राह देखते हुए खड़े रहे। तब उन वरवधू के व्यक्ति प्रभु को देखकर विचार करने लगे कि, 'देखो, ये महातपस्वी देवार्य इस पुरुष की राह देख रहे हैं। इसलिए शायद यह व्यक्ति उनका पीठधारी, छत्रधारी या कोई अन्य कार्य करने वाला सेवक होना चाहिये। इस प्रकार सोच कर उन्होंने प्रभु के लिए गोशाला को छोड़ दिया। पश्चात् प्रभु उसके साथ चलते हुए अनुक्रम से गोभूमि में आए। गोशाला ने ग्वालों से पूछा कि, अरे बीभत्स मूर्तिवालों! अरे म्लेच्छों! अरे अपने घर में ही शूरवीर ग्वालों! कहो, यह मार्ग कहाँ जा रहा है ? ग्वालों ने कहा 'अरे! मुसाफिर! तू बिना कारण किसलिए हमको गालियाँ दे रहा है। अरे साले! तेरा नाश हो जाएगा। गोशाला ने कहा, 'अरे दासी के पुत्रों! यदि तुम मेरा यह आक्रोश सहन नहीं कर सकोगे तो मैं और अधिक आक्रोश करूंगा, मैंने कोई तुमको गालियाँ नहीं दी। मैंने तो तुमको म्लेच्छ व बीभत्स ही तो कहा है। तो क्या तुम म्लेच्छ और बीभत्स नहीं हो? मैंने गलत क्या कहा है ?' यह सुनकर उन्होंने क्रोध से गोशाला को बांधकर बांस के वन में फेंक दिया। परंतु अन्य दयालु मुसाफिरों ने उसे छुडा दिया। वहाँ से विहार करके प्रभु राजगृह नगरी में पधारे। वहाँ चार मासक्षमण द्वारा विविध प्रकार के अभिग्रह करके प्रभु ने आठवाँ चौमासा निर्गमन किया। चातुर्मास के अंत में नगर के बाहर प्रभु ने पारणा किया। (गा. 36 से 52) तत्पश्चात् प्रभु ने चिंतन किया कि, मुझे अभी भी बहुत से कर्मों की निर्जरा करनी है' ऐसा विचार करके कर्म निर्जरा के लिए प्रभु ने गोशाला सहित वज्रभूमि, शुद्धभूमि और लाट आदि म्लेच्छ देशों में विचरण किया। उन देशों में परमाधार्मिक जैसे स्वच्छंदी म्लेच्छ विविध उपसर्गों से श्री वीरप्रभु को उपद्रव करने लगे। कोई प्रभु की निंदा करते, तो कोई प्रभु को हंसते और कोई श्वान आदि दुष्ट प्राणियों को लेकर प्रभु को घेर लेते परंतु 'इससे कर्मों का नाश होता है' ऐसा सोचकर शल्य के उद्धार के साधनों से छेदादिक होने पर जैसे हर्ष होवे वैसे प्रभु उन उपसर्गो से हर्षित होते थे। कर्म रोग की चिकित्सा करने वाले प्रभु कर्म का क्षय करने में सहायक उन म्लेच्छों को बंधु से भी अधिक मानते थे। जिनके चरण के अंगूठे के दबाने मात्र से, दबाव से अचल ऐसा मेरु 76 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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