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________________ प्रभु ने वहाँ रहने के लिए ग्राम वासियों को विज्ञप्ति की। तब वे ग्रामीण बोले कि “यहां एक यक्ष है, वह किसी को भी रहने नहीं देता है। उस यक्ष की भी लंबी कथा है। वह सुनो-यहाँ पहले वर्द्धमान नामक शहर था। यहाँ दोनों ही तट पर पंकिल वेगवती नामक नदी है। एक बार धनदेव नाम का कोई वणिक् किराने के गाडे भरकर यहाँ आया था। उसके पास एक बड़ा वृषभ था। उस बड़े वृषभ को आगे करके उसने सब गाडे नदी से पार कर दिये। अति भार को खींचने की वजह से उस वृषभ के मुंह से रूधिर का वमन हुआ और वह जीर्ण हुए सात्विक अश्व की भांति पृथ्वी पर गिर पड़ा। फिर उस वणिक ने उस गांव के सब लोगों को एकत्रित करके उस वृषभ की साक्षी से कहा कि “मैं अपने जीवन जैसे इस वृषभ को यहाँ धरोहर की तरह छोड़ कर जा रहा हूँ। इसका तुम सबको भलीभांति पालन पोषण करना हैं। वणिक ने घासचारे के लिए उन ग्राम्यलोकों को बहुत सा धन दिया। 'स्वामी का यही धर्म है। ऐसा करके वृषभ का प्रिय करके, आंखों में अश्रु लाकर अन्यत्र चला गया। उन पापी ग्रामीणों ने घासचारे के लिए धन लिया। परंतु जिस प्रकार कुवैद्य धन लेने पर भी रोगी की सार संभाल नहीं करता वैसे उस वृषभ की भी सार संभाल नहीं की। जिसका हृदय ही टूट गया है ऐसा और क्षुधा व तृषा से पीड़ित उस वृषभ के अंग पर मात्र अस्थि और चर्म ही अवशेष रहे अर्थात् वह सूख कर कांटा हो गया। वह सोचने लगा कि 'यह गांव बहुत ही निर्दय, पापी निष्ठुर, चांडाल के जैसा और बहुत ही ठग है। इन्होंने करुणा लाकर मेरा पालन करना तो दूर रहा, परंतु मेरे स्वामी ने जो मेरे दाना-पानी, घास चारे के लिए धन दिया था, वह भी खा गये। इस प्रकार उस गांव के लोगों पर क्रुद्धित वह वृषभ अकाम निर्जरा करके मरकर शूलपाणि नामक व्यंतर हुआ है। (गा. 79 से 92) उसने विभंग ज्ञान से अपने पूर्वजन्म की कथा जानी और अपना वृषभ रूप शरीर भी देखा। इससे उसे गांव के लोगों पर बहुत क्रोध आया। तब मानो महामारी का अधिकारी देव हो वैसे उसने उस गांव में महामारी के रोग की विकुर्वणा की। इससे वहाँ मरे हुए लोगों की हड्डियों का ढेर हो गया। गांव के आतुर लोग इस विषय में ज्योतिष आदि से मरकी की शांति के लिए उपाय पूछने लगे और जिस प्रकार वैद्य की आज्ञा का पालन रोगी करता है उसी प्रकार उनकी आज्ञा के अनुसार महामारी की शांति के लिए अनेक प्रकार के 38 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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