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________________ कमल को सूर्य की भांति उस पुत्र को निहारते हुए कुणिक परम आनंद में निमग्न होकर एक श्लोक का उच्चारण करने लगा, जिसका भावार्थ ऐसा था कि- “हे वत्स! तू मेरा अंगजात है और मेरे हृदय से निर्मित है, अतः मेरी आत्मा के समान है, इसलिए तू शतजीवी हो' इस प्रकार बारम्बार यह शोक बोलने पर भी वह विश्रांत नहीं हुआ। अर्थात् उस थोक के मिष से हृदय में नहीं समाते हर्ष का वमन करने लगा। कुमार के रक्षण में चतुर वृद्ध स्त्रियाँ राजा के हाथ से सूतिका गृह की शय्या में ले गई। राजा ने पुत्र का जातकर्म महोत्सव किया एवं श्रावक जैसे ब्राह्मणों के यथारूचि दान दिया। शुभ दिन में कुणिक ने महामहोत्सव से उस पुत्र का “उदायी” नामकरण किया। सुवर्ण सम कांतिवाले वह कुमार दिनोंदिन रक्षकों से रक्षित होता हुआ उद्यान के वृक्षों के समान वृद्धि को संप्राप्त होने लगा। कुमार को कटिस्थल पर बिठाकर निरन्तर भ्रमण करता हुआ कुणिक पुतलीवाले स्तंभ की भांति लगता। हकालाबाला शब्दों से कुमार को बुलाता हुआ कुणिक बोलने में अज्ञान ऐसे शिश की शोभा को धारण करता था। उठते, बैठते चलते सोते भोजन करते समय अंगुलियों में मुद्रिका के समान राजा उसे हाथों से छोड़ता ही नहीं था। ___(गा. 131 से 143) एक वक्त वह अपनी वामजंघा पर पुत्र को बिठाकर भोजन करने बैठा था, उसने आधा भोजन किया ही था कि इतने में उस शिशु के मूत्रोत्सर्ग किया। तब घी का धार के समान उसके मूत्र की धार भोजन पर गिरी। 'पुत्र के पेशाब के वेग का भंग न हो' ऐसा सोच कर कुणिक ने अपनी जंघा को किंचित्मात्र भी नहीं हिलायी।" पुत्र वात्सल्य ऐसा ही होता है।'' परंतु मूत्र से आर्द्र हुआ अन्न अपने हाथ से दूर करके शेष बचा अन्न उसी थाली में वह खाने लगा। पुत्र के प्रेम से वह भोजन भी उसे सुखदायक लगा। इस समय उसकी माता चेल्लणा पास में ही बैठी थी। उसको कुणिक ने पूछा कि- “हे माता! किसी को अपना पुत्र ऐसा प्रिय था या अभी होगा?' चेल्लणा बोली “अरे पापी! अरे राजकुलाधम! तू तेरे पिता को इससे भी अधिक प्यारा था, क्या तू यह नहीं जानता? मुझे दुष्ट दोहद होकर तू जन्मा था। इसी से तू तेरे पिता का बैरी हुआ है। सगर्भा स्त्रियों को गर्भ का अनुसार ही दोहद होते हैं। गर्भस्थ ही तू तेरे पिता का वैरी है, ऐसा जानकर मैंने पति के कल्याण की त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 291
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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