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________________ वर्जित थे। तीन प्रकार के दंड (मन, वचन, काया), तीन प्रकार के गारव, (ऋद्धि, रस, शाता) और तीन जाति के शल्य (माया, निदान, मिथ्यादर्शन) से रहित थे। चार कषायों को उन्होंने क्षीण कर दिया था। चारों संज्ञाओं से वे वर्जित थे। चारों विकथा से रहित थे। चतुर्विध धर्म में परायण थे। चार प्रकार के उपसर्गो में भी उनका उद्यम अस्खलित था। पंचविध महाव्रतों में सदा उद्योगी थे एवं पंचविध काम (पांच इंद्रियो के विषयों) के सदा द्वेषी थे। प्रतिदिन पांच प्रकार के स्वाध्याय में सदा आसक्त थे। पांच प्रकार की समिति को धारण करते थे एवं पांच इंद्रियों को जीतने वाले थे। षड् जीव निकाय के रक्षक थे। सात भय स्थानों से वर्जित थे। आठ मद के स्थान से विमुक्त थे, नवविध ब्रह्मचर्य की गुप्ति को पालते थे और दस प्रकार के यति धर्म को धारण करते थे। सम्यक् प्रकार से एकादश अंग का अध्ययन करते थे। दुःसह परीषह की परंपरा को सहन करते थे, और उनको किसी प्रकार की स्पृहा नहीं थी। ऐसे उन नंदनमुनि ने एक लाख वर्ष तक तप किया। इन तपस्वी महामुनि ने अर्हन्त भक्ति आदि वीस स्थानक की आराधना करके दुःख से प्राप्त हो ऐसा तीर्थंकर नाम कर्म उपार्जन किया। इस प्रकार मूल से ही निष्कलंक साधुत्व का आचरण करके आयुष्य के अंत में उन्होंने इस प्रकार से आराधना की (गा. 217 से 230) “काल और विनय आदि से जो आठ प्रकार का ज्ञानाचार कथित है, उसमें मुझे जो कोई भी अतिचार लगा हो तो उसकी मन-वचन-काया से निंदा करता हूँ। निःशंकित आदि जो आठ प्रकार का दर्शनाचार है, उसमें जो कोई भी अतिचार लगा हो तो उसे मैं मन-वचन-काया से वोसिराता हूँ। लोभ से या मोह से मैंने प्राणियों की सूक्ष्म या बादर जो कोई भी हिंसा की हो तो उसे मनवचन-काया से वोसिराता हूँ। हास्य, भय, क्रोध और लोभ आदि से जो मैंने मृषा भाषण किया हो, तो उन सर्व की मैं निंदा करता हूँ एवं उनका प्रायश्चित करता हूँ। हास्य, भय, क्रोध और लोभ आदि में जो मैंने मृषा भाषण किया हो, तो उन सर्व की मैं निंदा करता हूँ एवं उनका प्रायश्चित करता हूँ। राग द्वेष से अल्प या अधिक जो कुछ भी अदत्त परद्रव्य लिया हो तो उन सबको वोसिराता हूँ। पूर्व में मैंने तिर्यंच संबंधी, मनुष्य संबंधी या देवसंबंधी मैथुन मन से, वचन से या काया से सेवन किया हो तो उसको त्रिविध त्रिविध वोसिराता हूँ। लोभ के दोष से धन-धान्य और पशु आदि बहुत प्रकार का परिग्रह पूर्व में जो मैंने 16 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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