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________________ और निमग्ना नदी पर पुल बंधाया। उसके द्वारा वे नदी को पार करके स्वयमेव खुले हुए उस गुफा के उत्तर द्वार से चक्री बाहर निकले। वहाँ चक्रवर्ती ने आपात जाति के किरात लोगों को जीत लिया और सेनापति के पास से गंगा नदी के प्रथम निष्कूट को साधा। स्वयं ने अट्ठम करके गंगानदी को साधा। गुफा के अधिष्ठायक देव को साधकर सेनापति के पास से सिंधु के दूसरे निष्कूट को सधाकर चक्र का अनुसरण करके वहाँ से फिर लौट कर वैताढय गिरि के पास आए। वहाँ वैताढ्य के ऊपर की दोनों श्रेणियों के विद्याधरों को वश में कर लिया। पश्चात् खंडप्रपाता गुफा के अधिष्ठायक देव को साधकर सेनापति से गुफा के द्वार खुलवा कर चक्री ससैन्य वैताढ्य गिरि से बाहर निकले। प्रियमित्र चक्री ने अट्ठम तप किया, जिससे नैसर्प आदि नवनिधि उनके वशीभूत हो गई। उसके पश्चात् सेनापति के पास से गंगा नदी का दूसरा निष्कूट सधा कर छः खंड पर विजय प्राप्त कर प्रियमित्र चक्रवर्ती मूका नगरी में आए। वहाँ देवताओं एवं नरेशों मिलकर बारह वर्ष के महोत्सव पूर्वक उनका चक्रवर्ती रूप में अभिषेक किया। ये राजाधिराज नीति से पृथ्वी का पालन करने लगे। (गा. 190 से 213) एक बार मूका नगरी के उद्यान में पोट्टिल नाम के आचार्य समवसरे। उनसे धर्म श्रवण कर पुत्र को राज्यासीन करके उन्होंने दीक्षा अंगीकार की एवं कोटि वर्ष तक उत्कृष्ट तप किया। फिर चौरासी लाख पूर्व का आयुष्य पूर्ण करके मृत्यु प्राप्त करके महाशुक्र देवलोक में सर्वार्थ नामक विमान में देव बने। (गा. 214 से 216) महाशुक्र देवलोक से च्यवकर भरतखंड में छत्रा नामक नगरी में जितशत्रु राजा की भद्रा रानी का नंदन नामका पुत्र हुआ। उसे युवावस्था में राज्य पर बिठाकर जितशत्रु राजा ने संसार से निर्वेद पाकर दीक्षा ले ली। लोगों को आनंददायक वह नंदनराजा समृद्धि से इंद्र सदृश होकर यथाविधि पृथ्वी पर राज्य करने लगा। अनुक्रम से जन्म से चौबीस लाख वर्ष व्यतीत हो जाने पर विरक्त होकर नंदन राजा ने पोट्टिलाचार्य के पास दीक्षा ली। निरन्तर मासक्षमण के पारणे मासक्षमण करके अपने श्रामण्य का उत्कृष्टता से पालन करते हुए नंदनमुनि गुरु के साथ ग्राम, आकर और पुर आदि में विहार करते लगे। वे दोनों प्रकार के अपध्यान (आर्त, रौद्र) से और द्विविध बंधन (राग द्वेष) से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 15
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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