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________________ अपने मित्र का इस प्रकार अपंडित मृत्यु देखकर नागिल ने निर्वेद प्राप्त कर सद्य ही दीक्षा अंगीकार कर ली। निरतिचार चारित्र का पालन करके काल करके वह अच्युत देवलोक में देव बना। उसने अवधिज्ञान के द्वारा अपने मित्र को पंचशैल में उत्पन्न हुआ देखा। एकदा श्री नंदीश्वर की यात्रा करने देवगण जा रहे थे उनकी आज्ञा से हासा एवं प्रहासा गायन करने के लिए साथ में चल दी। उस समय ढोल बजाने के लिए विद्युन्माली को कहा गया। वह बोला कि 'क्या मेरे ऊपर स्वामी का हुक्म चलता है ? इस प्रकार अंहकार से मुख से हुंकार करता हुए उस विद्युन्माली के गले में माना मूर्तिमाना अभियोग्य कर्म हो वैसे वह ढोल उससे चिपक गया। वह उससे लज्जित होने लगा। हाथ पैर की भांति मानों शरीर के साथ उत्पन्न हुआ अवयव हो ऐसे वह ढोल किसी प्रकार से उतर सका नहीं। उस समय वह हासा प्रहासा बोली कि- 'अरे! यहाँ जन्म लेने वाले प्रणियों का यह कर्म ही है, इसलिए लज्जा मत करो, तुमको यह ढोल अवश्य ही बजाना पड़ेगा। ऐस कहकर हासा प्रहासा गाने लगी और वह ढोल बजाना हुआ देवताओं के पास आगे चल दिया। (गा. 352 से 365) उस समय वह नागिल देव भी यात्रा करने जा रहा था। उसने हासा प्रहासा के साथ उस देव को ढोल बजाने हुए देखा। तब अवधिज्ञान द्वारा उसने अपना मित्र जान कर उसे कुछ कहने के लिए उसके पास आया। परंतु सूर्य की प्रभा से उलक के समान उसके अंग की प्रभा को सहन करने में अशक्त वह विद्युन्माली देव वहाँ से पालयन करने लाग। यह देखकर उस अच्युत देव ने सांयकाल के सूर्य के सदृश अपने तेज का संहरण करके विद्युन्माली को रोक कर कहा कि, मेरे सामने देख, क्या तू मुझे नहीं पहचानता? पटहधारी ने कहा क्या मैं आपके जैसी विपुल समृद्धि वाले देवों को और इंद्रादिक को भी नहीं पहचानूंगा क्या?' तब अच्युतदेव ने पूर्वभव के श्रावक का रूप बनाकर हासाप्रहासा के लिए मृत्यु का वरण करते समय उसे जो प्रतिबोध दिया था, वह याद कराया और कहा कि 'हे मित्र! उस समय मेरे उपदेश देने पर भी तूने आर्हत् धर्म का आश्रय किया नहीं और मूढ़ बुद्धि से पतंग की भांति अग्नि में गिर कर मृत्यु को प्राप्त किया और मैं तो जिनधर्म को जानकर दीक्षा ग्रहण करके चारित्र पालन करके मृत्यु प्राप्त की। इससे अपने दोनों के पूर्वकर्म का भिन्न भिन्न परिणाम आया। यह सुनकर पंचशैल गिरिपति देव को अत्यन्त निर्वेद हो गया। 266 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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