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________________ प्रद्योत रखा। अभयकुमार लोगों को उसके लिए बार बार कहता कि 'यह मेरा भाई पागल हो गया है, यह इधर उधर घूमता रहता है । मुझे इसे बहुत कठिनाई से संभालना पड़ता है। क्या करूं कुछ समझ में नहीं आता ।" अभयकुमार प्रतिदिन वैद्य के घर ले जाने के बहाने उसे आर्त्त के समान खाट पर सुलाकर बांधकर मार्ग के बीच में से ले जाता था । उस समय वह पागल चिल्लाता हुआ उन्मत्त होकर ऊँचे स्वर से आँख में अश्रु लाकर कहता था कि, 'मैं प्रद्योत हूँ' यह मेरा हरण करके ले जा रहा है।' (गा. 279 से 288) इधर सातवाँ दिन आ गया, तब प्रद्योतन राजा गुप्त रीति से अभयकुमार के ठहरने के स्थान पर आया । तत्काल अभयकुमार के सुभटों ने हाथी के जैसे उस कामांध को बांध लिया । पश्चात् अभय ने 'इसे वैद्य के घर ले जाते हैं' ऐसा कहकर वह पुकारता ही रहा और दिन के समय में शहर के बीच में से होकर उसे ले गया। उसने पहले ही एक एक कोश पर श्रेष्ठ अश्ववाले रथ तैयार रखे थे । इस प्रकार निर्भय होकर अभयकुमार ने उसे एक दम राजगृही नगरी में पहुँचा दिया। पश्चात् उसे अभयकुमार श्रेणिक राजा के पास ले गया, उसे देखते ही श्रेणिक राजा खड्ग खींचकर मारने के लिए दौड़े। अभयकुमार ने उनको समझाकर शांत किया एवं वस्त्राभरण से सन्मान करके उन्होंने प्रद्योत राजा को हर्ष पूर्वक विदा कर दिया। (गा. 289 से 293) एक बार किसी कठियारे (काष्ट बेचने वाले) ने विरक्त होकर गणधर श्री सुधर्मा स्वामी के पास राजगृही में दीक्षा ली। उसे शहर में गोचरी आदि कारणों से भ्रमण करते समय उसकी पूर्वावस्था को जानने वाले नगरी के लोग स्थान स्थान पर उसका तिरस्कार मस्करी और निंदा करने लगे । ऐसी अवज्ञा को सहन नहीं कर सकने के कारण उसने श्री सुधर्मा स्वामी को विहार करने के लिए कहा। श्री सुधर्मास्वामी ने अभयकुमार को विहार करने विचार ज्ञात कराया। अभयकुमार ने उसका कारण पूछा। तब सुधर्मास्वामी ने पूर्वोक्त कारण दर्शाया। अभयकुमार ने उनसे एक दिन रहने की विनति की । इसलिए सुधर्मा स्वामी ने कठियारा मुनि के साथ वहाँ स्थिरता की । (गा. 294 से 297) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) 261
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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