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________________ बार लोहजंघ को भृगुकच्छ नगर भेजता था। उसके बार बार जाने आने से क्लेश को प्राप्त वहाँ के लोगों ने विचार किया कि, 'यह एक दिन में पच्चीस योजन आता है और अपने ऊपर नये नये हुकम लाता रहता है, इसलिए इसे मार देते हैं। ऐसा विचार करके उन्होंने एक दिन उसके भाते में विषमिश्रित लड्डू रख दिये और अच्छे थे वे ले लिए। वह भाता लेकर लोहजंघ अवंती चल दिया। बहुत सा मार्ग उल्लंघन करके किसी नदी के तट पर वह भाता खाना बैठा वहाँ उसे अपशकुनों ने रोक दिया। फिर वह आगे चलकर पुनः खाने बैठा तो वहाँ भी अपशकुन होने से रुक गया, तो वह भाता खाये बिना ही अवंती आ गया, वहाँ उसने सर्व वृत्तांत आकर प्रद्योत राजा को कहा। राजा ने अभयकुमार को बुलाकर पूछा, तब उस बुद्धिमान ने भाता की थैली को मंगवाकर सूंघ कर कहा कि 'इसमें उस प्रकार के संयोग से दृष्टिविष सर्प उत्पन्न हो गया है। यदि इस थैली को लोहजंघ ने खोल दी होती तो वह दग्ध हो जाता। इसलिए अब इसे अरण्य में पराङ मुख रहकर छोड़ दो। राजा ने उसी प्रकार छुड़ा दिया। उसकी दृष्टि से वहाँ से वृक्ष भी जल गये, और उसकी मृत्यु हो गई। यह सब देखकर चंडप्रद्योत ने अभयकुमार को कहा कि, “अभय! तुमने लोहजंघ को बचाया है। इसलिए छूट जाने की मांग के अतिरिक्त अन्य कोई भी वरदान मांग ले। अभयकुमार बोला कि “मैं यह वरदान अमानत के रूप में आपके पास रखता हूँ। (गा. 173 से 183) समुद्र में से लक्ष्मी के तुल्य चंडप्रद्योत राजा के अंगारवती रानी से वासवदत्ता नामक एक पुत्री थी। धायमाताओं से लालन पालन की हुई वह पुत्री अनुक्रम से साक्षात् राज्यलक्ष्मी के समान राजगृह के आंगण में क्रीड़ा करती थी। उस बाला ने गुरु के पास से सर्व कलाएँ ग्रहण की। मात्र किसी योग्य गुरु के अभाव में गंधर्ववेद सीखना अवशेष रहा। एक वक्त राजा ने अपने बहुदृष्ट और बहुश्रुत मंत्री को पूछा कि, 'इस दुहिता को गंधर्व की शिक्षा कौन से गुरु देंगे? मंत्री ने कहा कि, 'मानो तुंबरु गंधर्व की दूसरी मूर्ति हो वैसा उदायन नाम का राजा है, उसके पास गांधर्व कला अतिशयवाली है, ऐसा सुना है। वह वन में जाकर गीत के द्वारा मोहित करके विशाल गजेन्द्रों को भी बांध लेते हैं। वे गजेन्द्र मानो स्वादिष्ट रस पीता हो, वैसे बंधन को भी गिनता नहीं है। गीत के 254 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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