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________________ भिक्षा के लिए आए थे, परंतु तुम यहाँ आने की व्यग्रता में थे, अतः तुमको विदित नहीं हुआ। पश्चात् तम्हारे पुत्र की पूर्व जन्म की माता धन्या नगर की ओर आ रही थी, उसने उनको दहीं वहराया। उससे पारणा करके महासत्त्वधारी उन दोनों महामुनि ने शीघ्र ही संसार से मुक्त हाने के लिए अभी ही वैभारगिरि पर जाकर अनशन अंगीकार कर लिया है। यह सुनकर भद्रा श्रेणिक राजा के साथ तत्काल ही वैभारगिरि पर आई । वहाँ वे दोनों मुनि मानो पाषाण द्वारा घड़े हो वैसे स्थिर उसको दृष्टिगत हुए । उनके कष्ट को देखती हुई और पूर्व के सुखों का स्मरण करती हुई भद्रा / प्रतिध्वनि से मानोवैभारगिरि को भी रुलाती हो वैसे रोने लगी। वह बोली कि 'हे वत्स! तुम घर आए तो भी मैं अभागिनी तुमको पहचान न सकी । इससे मुझ पर अप्रसन्न मत होओ । यद्यपि तुमने तो हमारा त्याग किया ही है, परंतु किसी समय तुम मेरी दृष्टि को तो आनंदित करोगे, ऐसा प्रथम मेरा मनोरथ था । परंतु हे पुत्र ! इस शरीर त्याग के हेतु रूप आरंभ से भी तुम अब मेरा यह मनोरथ भी भंग करने को उद्यत हुए हो । हे मुनियों! तुमने जो यह उग्र तप आरंभ किया है, उसमें मैं विघ्न रूप नहीं होती, परंतु मेरा मन इस शिलातल के समान अतिशय कठोर हो गया है।” पश्चात् श्रेणिक राजा बोले कि - "हे भद्रे ! अभी हर्ष के स्थान रुदन क्यों कर रही हो ? तम्हारा पुत्र ऐसा महासत्त्ववान् होने से तुम एक ही सर्व स्त्रियों में वास्तव में पुत्रवती हो। इन तत्त्वज्ञ महासत्त्वधारी पुरुष ने तृण के समान लक्ष्मी को छोड़कर साक्षात् मोक्षपद तुल्य प्रभु के चरणों को अंगीकार किया है। हे मुग्धे! इन महाशय जगत्स्वामी के शिष्य ने जैसा चाहा वैसा तप किया है, तुम स्त्रीस्वभाव से वृथा ही परिताप किसलिए करती हो ? राजा ने इस प्रकार प्रतिबोध दिया, जिससे भद्रा उन मुनियों को वंदन करके खेदयुक्त चित्त से अपने घर लौट आई और श्रेणिक राजा भी अपने स्थान पर चले गये । 242 (गा. 166 से 180) दशम पर्व में दशार्णभद्र शालिभद्र, धन्य चरित्र वर्णक नामक दशम सर्ग त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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