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________________ धमण जैसे दिखने लगे । अन्यदा श्री महावीर स्वामी प्रभु के साथ वे दोनों महामुनि अपनी जन्मभूमि राजगृही नगरी में आए। प्रभु समवसरे हैं, ऐसा ज्ञात होने पर अतिशय श्रद्धा से लोग उनको नमन करने के लिए त्वरित गति से नगर से बाहर आये। इस अवसर पर धन्य और शालिभद्र दोनों मुनि मासक्षमण के पारणे के लिए भिक्षा लेने जाने की अनुज्ञा के लिए प्रभु के पास आए एवं नमस्कार करके खड़े हो गये । तब शालिभद्र के प्रति प्रभु ने कहा कि 'आज तुम्हारी माता के हाथ से प्राप्त आहार से तुम्हारा पारणा होगा ।' तब मैं चाहता हूँ' ऐसा कहकर शालिभद्र मुनि धन्य के साथ नगर में गए। दोनों ही मुनि भद्रा के गृहद्वार के पास आकर खड़े हुए । परंतु तपस्या के कारण अतिकृशता की वजह से किसी के भी पहचानने में नहीं आए। परंतु 'आज श्री वीर प्रभु शालिभद्र और धन्य मुनि के साथ यहाँ पधारें हैं, तो मैं उनको वंदन करने के लिए जाऊँ' ऐसी इच्छा के कारण आकुलव्याकुल हुई रोमांचित शरीर वाली भद्रा भी उसमें व्यस्त हो गई। उसका भी लक्ष्य वहाँ नहीं पहुँचा। इधर दोनों मुनि क्षणभर खड़े रहकर शीघ्र ही वहाँ से मुड़ गये। वे नगर के दरवाजे से बाहर निकल ही रहे थे कि शालिभद्र की पूर्व भव की माता धन्या नगर में दूध दही बेचने के लिए आती हुई सामने मिली । शालिभद्र को देखते ही उसके स्तन में से पय झरने लगा। तब उन दोनों मुनि के चरणों में वन्दन करके उसने भक्तिपूर्वक दही वहराया। वहाँ से शालिभद्र मुनि प्रभु के समक्ष आए एवं गोचरी की आलोचना करके अंजलिबद्ध होकर पूछने लगे कि “हे प्रभो! आपके कहे अनुसार मुझे मेरी माता के पास से पारणे के लिए आहार क्यों नहीं मिला ?” सर्वज्ञ प्रभु ने फरमाया कि 'हे शालिभद्र महामुनि! यह दही वहराने वाली तुम्हारी पूर्व भवकी माता धन्या थी ।' पश्चात् दही से पारणा करके प्रभुकी आज्ञा लेकर शालिभद्र मुनि धन्य के साथ अनशन करने के लिए वैभारगिरि पर गये। वहाँ धन्य सहित शालिभद्र मुनि ने शिलातल पर प्रतिलेखना करके पादपोपगमन नामक अनशन अंगीकार किया । (गा. 149 से 165) इधर शालिभद्र की माता भद्रा और श्रेणिक राजा उसी समय भक्तियुक्त चित्त से श्री वीर प्रभु के पास आये । प्रभु को नमस्कार करके भद्रा ने पूछा कि " हे जगत्पति! धन्य और शालिभद्र मुनि कहाँ गये ? वे हमारे घर भिक्षा के लिए क्यों नही आए ?” सर्वज्ञ प्रभु ने फरमाया कि, 'वे दोनों मुनि तुम्हारे घर पर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) 241
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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