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________________ नवम सर्ग हालिक, प्रसनचंद्र, दर्दुरांक देव, श्रेणिक का भावि तीर्थंकरत्व, शाल महाशाल, गौतम का अष्टापद पर आरोहण, अम्बड तथा सुलसा का चरित्र छद्मस्थावस्था में जब प्रभु जहाज में बैठ कर नदी पार कर रहे थे, उस वक्त सुदंष्ट्र नामक जिस नागकुमार देव ने प्रभु को उपसर्ग किया था, वह वहाँ से च्यवकर किसी गांव में कृषक हुआ था। वह कृषिकर्म से आजीविका चलाता था। एक वक्त वह हल से पृथ्वी को जोतने (खोदने) प्रवृत्ति कर रहा था, इतने में श्री वीरप्रभु जी उस गांव में पधारे। प्रभु ने उसे प्रतिबोध करने के लिए भेजा। गौतम ने उस किसान के पास आकर कहा कि, 'यह क्या कर रहा है? वह बोला- “मेरे भाग्य की प्रेरणा से यह खेती कर रहा हूँ।' गौतम ने पुनः कहा कि ऐसी शूद्र आजीविका से जीवन में क्या तुझे चिरकाल तक सुख होने वाला है ? अरे भद्र! यह कष्ट केवल इसी भव में तुझे प्राप्त हुआ है, ऐसा नहीं है, परंतु इस खेती में होने वाली जीव हिंसा से ऐसा कष्ट दूसरे भव में भी तुझे प्राप्त होगा। इस महा कठिन कर्म से, कष्ट से एक लाखवें अंश का कष्ट भी जो धर्मकार्य में किया जाय तो तत्काल ही सर्व कष्ट का अंत आता है।' इस प्रकार गौतम स्वामी के वचनों को श्रवण कर वह बोला कि- 'हे स्वामी! आपने मुझे अच्छा बोध दिया, अब मैं संसार से भी उद्विग्न हो गया हूँ इसलिए मुझे दीक्षा दो। पश्चात् यह प्रतिबोध को पाया है, ऐसा जानकर गौतम स्वामी ने उसे तुरंत ही दीक्षा दे दी। एवं श्री वीर प्रभु के श्री चरणों में जाने के लिए उसे ले चले। हालिक (कृषिवल) मुनि ने उनको पूछा कि, भगवान्! अपने को कहाँ जाना है ? गौतम ने कहा हे साधु! मेरे गुरु के पास अपने को चलना है। हालिक मुनि बोले कि “आपके समान अन्य कोई लगते नहीं हैं, इस उपरान्त भी क्या आपके भी कोई गुरु है ? तो वे कैसे होंगे? गौतम ने कहा कि “चौतीस अतिशय सहित विश्वगुरु, सर्वज्ञ श्री चरम तीर्थकर मेरे गुरु हैं। यह सुनकर हालिक मुनि ने सर्वज्ञ प्रभु पर प्रीति त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 211
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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