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________________ गोशाला द्वारा छोड़ी हुई तेजोलेश्या से श्री वीरप्रभु को रक्त अतिसार तथा पित्तज्वर हो जाने से शरीर अत्यन्त कृश हो गया। तथापि उन्होंने कुछ भी औषध नहीं किया। प्रभु के शरीर में उग्र व्याधि को देखकर लोगों में ऐसा प्रवाद चला कि गोशाला की तेजोलेश्या से श्री वीर प्रभु जी छः महिने में मरण शरण हो जावेंगे। ऐसी चर्या को सुनकर सिंह नामक प्रभु के अनुरागी शिष्य एकान्त में जाकर ऊँचे स्वर से रुदन करने लगे। ऐसी बात से किसे धीरज रहे ? केवलज्ञान द्वारा यह बात ज्ञात करके वीरप्रभु ने उन्हें बुलाकर के कहा कि 'अरे भद्र! लोगों की बातों को सुनकर तुम क्यों भयभीत होते हो? एवं हृदय में क्यों परिताप करते हो? तीर्थंकर कभी भी ऐसी आपत्ति से मृत्यु प्राप्त करते नहीं। संगमक आदि के प्राणांत उपसर्ग भी क्या वृथा नहीं गये?" सिंह मुनि ने कहा कि, “हे भगवन्! यद्यपि आपका कथन सत्य है, तथापि आपकी आपत्ति को देखकर सभी लोग अत्यन्त परिताप को प्राप्त हुए है। इसलिए हे स्वामी! मुझ जैसे की मन की शांति के लिए आप औषध का सेवन करें आपको पीड़ित देखने में मैं क्षणभर भी समर्थ नहीं हूँ।" सिंहमुनि के अत्याग्रह से प्रभु ने फरमाया, 'रेवती नामक एक श्रेष्ठी की स्त्री ने मेरे लिए कोले का कटाह पकाया है, वह तुम मत लेना, किंतु अपने घर के लिए उसने बीजोरे का कटाह पकाया है, वह ले आओ। तुम्हारे आग्रह से मैं वह औषध ग्रहण कर लूंगा कि जिससे तुमको धैर्य हो जाएगा।" इस प्रकार प्रभु की आज्ञा होने से सिंह मुनि रेवती के गृह गये और उसके द्वारा प्रदत्त उस कल्पनीय औषध को सद्य ग्रहण किया। हर्षित होकर देवगणों ने उसके घर में सुवर्ण की दृष्टि की। सिंह मुनि द्वारा लाए उस उत्तम प्रासुक औषध का सेवन करके संघ रूपी चकोर पक्षी में पूर्णचंद्र तुल्य वीरप्रभु ने सद्य शरीर की आरोग्यता की प्राप्त की। (गा. 543 से 552) दशम पर्व का अष्टम सर्ग समाप्त 210 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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