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________________ करने निकले। मार्ग में जाते हुए किसी निर्जन अरण्य में आए। वहाँ वे पांचों जन मरुस्थल में गये हो वैसे तृषा से आक्रान्त हो गए। इसलिए वे उस महाटवी में अटन करके जल की तलाश करने लगे उनमें से अवसर को घूमते घूमते वहां पांच शिखर वाला वल्मीक दिखाई दिया, उसने उसे चारों ही मित्रों को बताया । तब उन सबने मिलकर उनमें से पूर्व का शिखर तोड़ा। उसमें से बहुत सा जल निकला। उसका पान करके वे सभी स्वस्थ हुए । तब प्रसर ने कहा कि इसके दक्षिण शिखर को भी तोड़े, तो उसमें से भी अपने को अवश्य ही कोई अन्य वस्तु मिलेगी। तब अवसर ने कहा कि, 'अपने को वह खोदना योग्य नहीं है, क्योंकि वल्मीक सर्प का ही स्थान होता है। यह सुन कर संवाद बोला कि, तुम्हारे बोलने में बहुत अन्तर है क्योंकि प्रथम ही फोड़े शिखर से सर्प निकला नहीं है जल निकला है 'इसी प्रकार कभी दैवयोग से इसमें से अन्य वस्तु भी निकल सकती है। इस प्रकार कहकर कारक उसे खोदना लगा । तब ऐसा करने में मेरा मत नहीं है, ऐसा कहकर अवसर अपने गाड़े में बैठकर आगे चल दिया। तब भलन बोला कि 'अवसर जाता है तो जाए, अपन तो इसके बिना भी अपन इस शिखर को तोड़ेंगे। उसे खोदने पर उसमें से तांबे के सिक्के निकले। तब अवसर के अतिरिक्त उन चारों ने वह बांट लिया। लोभ ने उन्होंने तीसरा शिखर खोदा, तो उसमें से चांदी निकली, तो वह भी चारों ने बांट ली। पश्चात् चौथा शिखर खोदा, तो उसमें से स्वर्ण निकला । लोभ से चांदी को छोड़कर उस सुवर्ण का विभाजन कर लिया। उस समय सबने विचार किया कि इस पांचवें शिखर में से अवश्य ही रत्न होंगे। इस विचार से उन लोभांध वणिकों ने उसे भी खोदा। क्योंकि ‘लाभ से लोभ बढ़ता है।' परंतु अत्यंत मंथन किये हुए समुद्र में से अंत में कालकूट ही निकला था, उसी भांति उस शिखर को खोदते समय एक दृष्टिविष सर्प निकला। उस सर्प ने वल्मीक के ऊपर चढ़कर सूर्य के सामने देखकर विषदृष्टि से देखा, तो वृषभ सहित चारों गाड़े और चारों ही वणिक शीघ्र ही उसमें दहन हो गये । उस अवसर को निर्लोभी जानकर उसकी अधिष्ठाता देवी ने बैल और गाड़े सहित निश्चित स्थान पर पहुँचा दिया । " (गा. 372 से 390) हे आनंदमुनि! उन चार वणिकों की भांति मैं तेरे गुरु को जला दूंगा और उस अवसर की तरह तुझे छोड़ दूंगा । इस प्रकार सुनकर शिक्षा समाप्त करके आनंद मुनि प्रभु के पास आये एवं गोशाला ने जो कहा था, वह सब कह त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 200
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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