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________________ लोग प्रतिदिन उसके पास आकर उपासना करते थे। उस समय गौतम स्वामी प्रभु की आज्ञा से छट्ट का पारणा करने के लिए नगर - भिक्षाटन के लिए पधारे। वहाँ उन्होंने सुना कि यहाँ गोशाला अर्हन्त और सर्वज्ञ के नाम से विख्यात होकर आया हुआ है। यह सुनते ही गौतमस्वामी खेद प्राप्त कर भिक्षा लेकर प्रभु के पास आए | पश्चात् विधिपूर्वक पारणा करके योग्य अवसर पर गौतमस्वामी सर्व लोगों के समक्ष स्वच्छबुद्धि से प्रभु को पूछा कि हे स्वामी! इस नगरी में लोग गोशाला को सर्वज्ञ कहकर बुलाते हैं, वह वस्तुतः है या नहीं ? प्रभु ने फरमाया कि, “यह मंख और मंखली का पुत्र गोशाला है। यह कपटी अजिन होने पर भी अपनी आत्मा को जिन मानता है । हे गौतम! मैंने ही उसे दीक्षा दी , शिक्षा भी मैंने ही दी है । और उसके पश्चात् वह मिथ्यात्वी हो गया । वह सर्वज्ञ नहीं है।" प्रभु के ऐसे वचन सुनकर नगर के लोग नगर में चारों तरफ चौराहों में और गलियों में परस्पर कहने लगे कि अहो भाई ! श्री वीरप्रभु अर्हत यहाँ पधारे हुए हैं, वे कहते हैं कि, यह गोशाला वह मंखलीपुत्र है और वह स्वयं मिथ्या ही अपने को सर्वज्ञ मानता है।' इस प्रकार के लोगों से यह सुनकर गोशाले को काले सर्प के समान अत्यन्त कोप उत्पन्न हुआ। इसके लिए अपने परिवार से परिवृत होकर कुछ विपरीत करने के लिए उद्यत हुआ। (गा. 355 से 366) इसी समय प्रभु के शिष्य और स्थविरों में अग्रणी आनंदमुनि छट्ठ का पारणा करने के लिए नगरी में भिक्षा लेने हेतु पधारे। जिस हालाहल कुंभकारी के घर गोशाला रहता था, वहाँ से आनंद मुनि पसार हुए । तब गोशाला ने उनको बुलाया और कहा “अरे आनंद ! तेरा धर्माचार्य लोगों में अपना सत्कार करवाने की इच्छा से सभा के बीच मेरा अत्यन्त तिरस्कार करते हैं, और कहते हैं कि गोशाला तो मंख पुत्र है, अर्हन्त तथा सर्वज्ञ नही है, परंतु अभी वह शत्रु को दहन करने में समर्थ, ऐसी मेरी तेजोलेश्या को जानते नहीं हैं। परंतु मैं उनको परिवार सहित भस्म कर दूंगा । मात्र तुझे अकेले को छोड़ दूंगा। इस पर एक दृष्टान्त सुन (गा. 367 से 371) पूर्व में मिला नगरी में अवसर, प्रसर, संवाद, कारक और भलन नाम के पांच वणिक रहते थे। किसी समय वे कुछेक किराने के गाड़े भरकर व्यापार त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) 199
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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