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________________ देवलोक में दस सागरोपम आयुष्य वाला देवता हुआ। कपिल भी आसूर्य आदि अपने शिष्य बनाकर उनको अपने आचार का उपदेश देकर मृत्यु के पश्चात् ब्रह्मदेवलोक में देव हुआ। वहाँ अवधिज्ञान से अपना पूर्वभव ज्ञात कर वह पृथ्वी पर आया तथा उसने आसूर्य आदि को अपना सांख्यमत बताया। उसके आम्नाय से इस पृथ्वी पर सांख्य दर्शन का प्रवर्तन हुआ, क्योंकि लोग प्रायः सुखसाध्य अनुष्ठान में ही प्रवर्तते हैं। (गा. 60 से 74) मरीचि का जीव ब्रह्मदेवलोक से च्यवित हो, कोल्लाक नामक गाँव में अस्सी लाख पूर्व का आयुष्यवाला कौशिक नामक ब्राह्मण हुआ। विषयों में आसक्त, द्रव्य उपार्जन करने में तत्पर और हिंसादि कार्य में निर्दय, उस ब्राह्मण ने बहुत सा समय व्यर्थ किया। अंत में त्रिदंडी होकर मृत्यु वरण कर बहुत से भवों में भ्रमण कर स्थुणा नामक स्थल पर पुष्पमित्र नामक ब्राह्मण हुआ। वहाँ भी त्रिदंडी होकर बहत्तर लाख पूर्व का आयुष्य पूर्ण कर सौधर्म देवलोक में मध्यम स्थितिवाला-देवता हुआ। वहाँ से भी च्यवन कर चैत्यनामक स्थान में वह चौसठ लाख पूर्व की आयुष्य वाला अग्न्युद्योत नामक ब्राह्मण हुआ। उस भव में भी त्रिदंडी हुआ। बाद में मृत्यूपरान्त ईशान देवलोक में मध्यम आयुष्य वाला देव हुआ। वहाँ से च्यवन होने पर मंदिर नामके सन्निवेश में अग्निभूति नामका ब्राह्मण हुआ। उस भव में भी त्रिदंडी-होकर छप्पन लाख पूर्व का आयुष्य भोग कर मृत्यु प्राप्त कर सनत्कुमार देवलोक में मध्यमायु वाला देवता हुआ। वहाँ से च्यवकर श्वेतांबी नगरी में भारद्वाज नामक विप्र हुआ। उस भव में भी त्रिदंडी हुआ और चंव्वालीस (४४) लाख पूर्व का आयुष्य भोग कर माहेन्द्र कल्प में मध्यम स्थिति का देव बना। वहाँ से च्यवित हो भ्रवभ्रमण करके राजगृही नगरी में स्थावर नाम का ब्राह्मण हुआ। उस भव में भी त्रिदंडी होकर चौंतीस लाख पूर्व का आयुष्य भोगकर मृत्यु के पश्चात् ब्रह्मदेवलोक में मध्यम आयुष्य वाला देव हुआ। वहाँ च्यवकर उसने अनेक भवों में भ्रमण किया, कारण कि अपने कर्म के परिणाम से प्राणी अनंतभव में भ्रमण करने वाला होता है। (गा. 75 से 85) राजगृही नगरी में विश्वनंदी राजा था। उसके प्रियंगु नाम की पत्नि थी। उसके विशाखनंदी नाम का पुत्र हुआ। उस राजा के विशाखभूति नाम का छोटा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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