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________________ के कहने से अभयकुमार ने उस वर्द्धकी को वन में से तुरंत ही बुला लिया और अपना वांछित सिद्ध हो गया, ऐसा कहा । व्यंतर ने अपनी कबूलता के अनुसार एक स्तंभवाला महल और उद्यान बना दिया । 'वाणी से बद्ध देवतालोग सेवकों से भी अधिक होते हैं।' सर्व ऋतुओं के वन से मंडित उस एक स्तंभी प्रासाद को अभयकुमार श्रेणिकराजा को बताया । राजा ने प्रसन्न होकर कहा कि- 'वत्स! मुझे तो मात्र एक स्तंभवाले महल की इच्छा थी, उसमें ये सर्व ऋतुवाला वन हो गया, यह तो दूध का पान करते उसमें मिश्री पड़ने जैसा हुआ ।' मगधपति ने चेल्लणा को उस प्रासाद में रखी जिससे लक्ष्मी देवी द्वारा पद्महृद के समान वह प्रासाद उससे अलंकृत हो गया । वहाँ रहकर चेल्लणा सर्व पुष्पों की माला अपने हाथों से गूंथकर सर्वज्ञ प्रभु की पूजा करने लगी । साथ ही उन सुगन्धित पुष्पों से गूंथी हुई मालाओं से सैरंध्री की भांति अपने पति के केशपाश को भी भरने लगी । इस प्रकार हमेशा श्री वीतराग प्रभु के लिए और पति के लिए पुष्पों को धर्म तथा काम में सफल करती थी । सदा पुष्पवाले और सदा फलवाले उस उपवन में मूर्त्तिमान वनदेवी की भांति चेल्लणा सदा पति के साथ क्रीड़ा करती थी । (गा. 49 से 69 ) उस नगर में एक विद्यासिद्ध मातंगपति रहता था । उसकी पत्रि को एक बार आम्रफल खाने का दोहद उत्पन्न हुआ। इससे उसने पति को कहा कि - ' हे नाथ! मुझे आम्रफल लाकर मेरे दोहद को पूरा कर दो।' वह बोला- 'अरे मूढ स्त्री ! अकाल में आम्रफल कहाँ हो सकता है ? स्त्री के कहा 'नाथ ! आज भी चेल्लणा रानी के उद्यान में आम्रवृक्ष प्रफुल्लित है।' यह सुनकर मातंगपति चेल्लणा के समीप में आया । वहाँ आम्रवृक्ष सदा फलित थे, परंतु वे बहुत ऊँचे थे। तब वह रात में आकर नक्षत्रों को जैसे ज्योतिष देखता है, वैसे वे भूमिपर पड़े हुए आम्रफलों को देखने लगा । क्षणमात्र में विद्यासिद्ध चंडाल उस अवनामिनी विद्या से आम्रशाखा को नमाकर स्वेच्छा से आम्रफल तोड़कर ग्रहण किये। प्रातः काल में रानी चेलया ने तोड़े हुए आम्रफल वाली उस वाटिका को भ्रष्ट चित्रों वाली चित्रशाला की तरह अप्रीति देती हुई देखी । रानी ने यह बात राजा को कही । राजा ने अभय को बुलाकर आज्ञा दी कि 'जिसके पैरों का संचार दिखाई भी न दे, ऐसे आम्रफल के चोर की शोध कर लेना । हे वत्स! त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व ) 158
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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