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________________ बदले मैंने अंतःपुर के समीपस्थ हाथियों की जीर्ण पर्णकुटियों को जलाडाला है। आपकी आज्ञा भी मैं बिना विचारे करूं, ऐसा नहीं हूँ।' ___ (गा. 34 से 45) राजा उन वचनों को सुनकर हर्ष से बोला कि “हे वत्स! वस्तुतः तू ही मेरा पुत्र है और बुद्धिसंपन्न है, कि जिससे मुझ पर आया यह कलंक तूने बुद्धि द्वारा दूर कर डाला।" श्रेणिक महाराजा ने पारितोषिक द्वारा अभयकुमार को संतुष्ट करके चेल्लणा देवी के दर्शन के लिए उत्सुक होकर शीघ्र ही उसके गृह में गये और नये नये प्रीतिभाव से लक्ष्मी के साथ कृष्ण की तरह चेलणा के साथ प्रतिदिन क्रीड़ा करने लगे। (गा. 46 से 48) ___ एक बार श्रेणिक राजा ने विचार किया कि चेल्लणा देवी मुझे सर्व स्त्रियों की अपेक्षा अधिक प्रिय है, तो अन्य रानियों से उस पर क्या विशेष प्रासाद करूँ ? उसके लिए मैं एकस्तंभवाला प्रासाद कराउ कि उसमें रह कर विमान में रही खेचरी के तुल्य वह स्वेच्छा से क्रीड़ा कर सके।' ऐसा निश्चय करके श्रेणिक ने अभयकुमार को तुरंत ही वैसे स्तंभ योग्य काष्ट लाने के लिए सूत्रधार को आज्ञा दी। तब वर्द्धकी (सुथार) तदनुरूप काष्ट लेने के लिए अरण्य में गया। अटवी में देखते देखते सर्व लक्षणो से युक्त एक वृक्ष उसे दिखाई दिया। उसने विचार किया कि ‘सघन छाया वाला गगनचुम्बी अनेकों पुष्पों और फलों से युक्त एवं बड़ी बड़ी शाखा वाला यह वृक्ष सामान्य नहीं लगता। जैसा तैसा भी स्थान देव बिना नहीं होता तो यह भी प्रगट दैवतवाला मालूम देता है। इसलिए प्रथम मैं इस वृक्ष के अधिष्ठायक देवता को तपस्या से आराधूं कि जिससे इसका छेदन करने के पश्चात् मुझे या मेरे स्वामी को दुःख न हो।' वर्द्धकी ने भक्तिपूर्वक उपवास करके गंध, धूप, माल्यादि वस्तुओं से उस वृक्ष को अधिवासित किया। उस समय उस वृक्ष के आश्रित रहे हुए व्यंतर देवता ने अपने आश्रय की रक्षा के लिए और उसके अर्थ की सिद्धि के लिए अभयकुमार के पास आकर कहा कि, 'तू मेरे आश्रयभूत वृक्ष का छेदन मत करा, इस वर्द्धकी को यह काम करते रोक दो। मैं एक स्तंभवाला प्रासाद बना दूंगा। साथ ही उसके चारों ओर सर्व ऋतुओं से मंडित तथा सर्व वनस्पतियों से सुशेभित नंदनवन जैसा एक उद्यान भी बना दूंगा।' इस प्रकार उस व्यंतर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 157
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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